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चिड़ियों के गांव में घर था मेरा (भाग 2 )

 

गाँव और प्रकृति की याद में)

चिड़ियों का इक गाँव था प्यारा,
पेड़ों पे बजता था मधुर सितारा।
हर सुबह कोयल गीत सुनाती,
तुलसी चौरे पर माँ दीप जलाती।

कच्चे रस्ते, धूल भरी गली,
साँझ को आती थी बंसी चली।
ताल किनारे पीपल की छाया,
गुज़रा बचपन, वो मीठा साया।

बरगद की जड़ में खेला करता,
पानी की धार में सपना बहता।
गोधूलि बेला, बैलों की घंटी,
मन में बजती मीठी सी संटी।

खेतों की हरियाली मुस्काती,
फसलों से माँ जैसी खुशबू आती।
आँगन में चूजों की दौड़ लगी,
नन्हीं हँसी में दुनिया झिलमिली।

अब शहर की भीड़ में गुम हूँ,
सपनों की नींद से दूर बहुत हूँ।
पर मन का पंछी वहीं उड़ता है,
जहाँ चिड़ियों का गाँव बसता है।

दलीप सिंह 

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