उपभोक्तावाद की संस्कृति-
1) धीरे-धीरे सब कुछ बदल गया है | एक
नई जीवन - शैली अपना वर्चस्व
स्थापित कर रही है | उसके साथ आ रहा है
एक नया जीवन–दर्शन उपभोगतावाद का दर्शन |
उत्पादन बढ़ाने पर ज़ोर है चारों ओर |
यहाँ उत्पादन आप के लिए है आपके भोग के लिए है,आप के सुख केलिए है |‘सुख’ की व्याख्या बदल
गई है | उपभोग-भोग ही सुख है | एक सूक्ष्म बदलाव
आ गया है नई स्थिति में |
उत्पाद तो आप के लिए है, पर
आप यह भूल जाते है कि जाने–अनजाने
आप के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं |
1) लेखक के अनुसार जीवन में सुख से क्या अभिप्राय हैं | 2
2) जाने-अनजाने आज के माहौल
में आप का चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे है ,कैसे ? 2
3) उपभोक्तावादी जीवनशैली के कारण क्या बदल रहा है ? 1
उत्तर-
1) लेखक के अनुसार सुख का अभिप्राय केवल वस्तुओं तथा साधनों के उपभोग से मिलने
वाली सुविधाई समझते है लेकिन लेखक का
मानना है कि ‘उपभोग सुख’ ही सुख नहीं है | सुख की सीमा में शारीरिक ,मानसिक व अन्य सूक्ष्म आराम भी आते है |
2) आज उपभोक्तावादी संस्कृति को अपनाने के फल स्वरूप मनुष्य उपभोग को ही परमसुख
मान बैठा है | वह उत्पाद एव भोग
के पीछे भागा जा रहा है | यह
सब अनजाने में कर रहा है |
इससे उसका चरित्र भी बदल रहा है और उपभोग को ही वह जीवन का लक्ष्य मानने लगा है |
3) उपभोक्तावादी जीवनशैली के कारण जीवन का दृष्टिकोण, सुख की परिभाषा, व चरित्र भी बदल
रहा है |
2. हम सांस्कृतिक अस्मिता की बात कितनी ही करें परम्पराओं का अवमूल्यन हुआ है, आस्थाओं का क्षरण हुआ है | कड़वा सच तो यह है कि हम बौद्धिक दासता
स्वीकार कर रहे है,पश्चिम के
सांस्कृतिक उपविनेश बन रहे है । हमारी नई संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है | हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा
रहे है | प्रतिष्ठा की अंधी
प्रतिस्पर्धा में जो अपना रहें हैं उसे खो कर छद्म आधुनिकता की गिरफ्त में आते जा
रहे हैं | संस्कृति की
नियंत्रक शक्तियों के क्षीण हो जाने के कारण हम दिग्भ्रमित हो रहे हैं |
(1) उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारी परंपरा और आस्थाओं को किस प्रकार प्रभावित
किया है ?2
2 ) संस्कृति की नियंत्रण शक्तियाँ आज क्षीण हो रही है ,ये शक्तियाँ कौन सी है ?2
3) हम दिग्भ्रमित क्यों होते जा रहे है ?1
उत्तर-
1) उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को अत्यंत गहराई से प्रभावित कर उसके स्वरूप में काफी
बदलाव ला दिया है जिसके चलते उसका अवमूल्यन तथा क्षरण हुआ है |
2) भारतीय धर्म ,परंपराएँ और आस्थाएँ भारतीय संस्कृति की
नियंत्रण शक्तियाँ है | लोग
धर्म को पाखंड मानने लगे है,पुरानी
परंपराएँ,रीति-रिवाज खंडित होते जा रहे है,और
लोगों के आचरण पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव बढ़ता जा रहा है |
3) संस्कृति की नियंत्रण शक्तियों के क्षीण हो जाने के कारण हम दिग्भ्रमित होते
जा रहे हैं |
3 इस संस्कृति के फैलाव का परिणाम क्या होगा ? यह गंभीर चिंता का विषय है |
हमारे संसाधनो का घोर अपव्यय हो रहा है | जीवन की गुणवत्ता आलू के चिप्स से नहीं सुधरती | न बहुविज्ञापित शीतल पेयों से | भले ही वे अंतर्राष्ट्रीय हों | पीज़ा और बर्गर कितने ही आधुनिक हों, है वे कूड़ा खाघ | समाज में वर्गो की
दूरी बढ़ रही है, सामाजिक सरोकारों
में कमी आ रही है | जीवन स्तर का यह
बढ़ता अंतर आवेश और अशांति को जन्म दे रहा है | जैसे-जैसे दिखावे की यह
संस्कृति फैलेगी ,सामाजिक अशांति भी
बढ़ेगी | हमारी सांस्कृतिक
अस्मिता का हास तो हो ही रहा है, हम
लक्ष्य-भ्रम से भी पीड़ित है | विकास के विराट उद्देश्य पीछे हट रहे है
|
हम झूठी तुष्टि के तात्कालिक लक्ष्यों का पीछा कर रहे है | मर्यादाएँ टूट रही है ,नैतिक मानदंड ढीले पड रहे है |व्यक्ति केंद्रिकता बढ़ रही है, स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है |भोग की आकांक्षाएँ आसमान को छू रही है |
1 ) उपभोक्तावाद ने भारतीय संस्कृति को किस प्रकार हानि पहुंचाई है ?2
2 ) सामाजिक सरोकारो में कमी आने से समाज को क्या हानि पहुँच रही है ?2
3 )जीवन की गुणवत्ता किस्से नहीं सुधरती ?1
उत्तर-
1) उपभोक्तावाद ने भारतीय संस्कृति को भयानक क्षति पहुंचाई है | इससे हमारे सीमित संसाधनों का घोर
अपव्यय हो रहा है | हमारी सांस्कृतिक
विशेषता- सादगी ,सरलता ,शांति व सहयोग की भावना कम होती जा रही है | हमारे नैतिक मानदंड ढीले पड़ रहे है,व्यक्ति केंद्रिकता बढ़ रही है और स्वार्थ पर परमार्थ हावी हो रहा है |
2) सामाजिक सरोकारो में कमी आने से समाज में सबसे बड़ी हानियह हुई है कि समाज में
वर्गों की दूरी बढ़ रही है |
जीवन स्तर का बढ़ता अंतर,
आवेशऔर अशांति को जन्म दे रहा है |
स्वार्थ के आगे परमार्थ का अस्तित्व विलुप्त होता जा रहा है | मानवीय मूल्यों में गिरावट आने से
सामाजिक मर्यादाएँ टूट रही है तथा नैतिक मानदंड ढीले पड़ रहे है |
3)आलू के चिप्स खाने से जीवन की गुणवत्ता नहीं सुधरती |
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (2x 5 अंक )
1) लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-लेखक के अनुसार ‘सुख’ की
व्याख्या बदल गई हैं | उपभोग-भोग ही सुख माना जाने लगा हैं | जीवन में सुख पाने का मतलब बाज़ार में प्रचारित वस्तुओं
का अधिक से अधिक उपयोग करना माना जाने लगा हैं |
2)आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे
दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है ?
उत्तर–आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे
दैनिक जीवन को अनेक प्रकार से प्रभावित कर रही है | जैसे हम विज्ञापन में प्रचारित वस्तुओं का अधिक से
अधिक प्रयोग करने लगे हैं |
गुणवत्ता को अनदेखा कर के कूड़ा खाद्य खाने
लगे हैं | प्रसाधन सामग्रियों का इस्तेमाल
बढ़ गया हैं |
उपभोक्तावादी समाज के अनुरूप हम फैशनपरस्त बन गये हैं |
3)लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के
लिए चुनौती क्यों कहा हैं ?
उत्तर- लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती कहा हैं क्योंकि हमारी सांस्कृतिक अस्मिता का ह्रास तो हो ही रहा है ,हम लक्ष्य भ्रम से भी पीड़ित है | विकास के विरत उद्देश्य पीछे हट
रहे है,हम झूठी तुष्टि के तात्कालिक
लक्ष्यों का पीछा कर रहे हैं |
मर्यादाएँ टूट रही हैं,नैतिक
मानदंड ढीले पड रहे हैं | व्यक्ति केन्द्रकता बढ़ रही हैं ,स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है
| भोग कीआकांक्षाएँ आसमान को छू रही
हैं |
4)आशय स्पष्ट कीजिए –
1)जाने–अनजाने
आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे
हैं |
उत्तर-आज के परिवेश में हम सबके चरित्र पर उपभोक्तावादी
संस्कृति का प्रभाव बढ़ता जा रहा हैऔर हम बाजार में उपलब्ध वस्तुओं पर निर्भर करने
लगे है जैसे कुछ वर्ष पहले मोबाइल कुछ अमीरों
केलिए ही उपयोगी माना जाता था, पर
आज सब मोबाइल के बिना अधूरा महसूस करते है |
2)प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं,चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो |
उत्तर- उपभोक्तावादी समाज में झूठी शान की खातिर कुछ लोग मज़ाक का पात्र बनने लगे है | अमरीका और यूरोप के कुछ देशों में
आप मरने के पहले ही अपनेअंतिम संस्कार और अनंत विश्राम का प्रबंध भी एक कीमत पर कर
लेते है | आपकी कब्र के आस-पास सदा हरी घास होगी | चाहे तो वहाँ फव्वारे होंगे और मंदध्वनि में निरंतर
संगीत भी | कल भारत में भी यह संभव हो सकता
है |
अमरीका में आज जो हो रहा है ,कल
वह भारत में भी आ सकता है |
(5)आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका
विज्ञापन ? तर्क देकर स्पष्ट करें |
उत्तर- वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए न कि उसका विज्ञापन
क्योंकि विज्ञापनों में किसी वस्तु को बढ़ा-चढ़ाकर
पेश किया जाता है | विज्ञापन में झूठे दावे किए जाते है |
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