रस
रस वास्तव में काव्य की आत्मा है | किसी भी
साहित्य में रस के बिना काव्य सत्ता की कल्पना नहीं की जा सकती | इसीलिए संस्कृत
में आचार्य विश्वनाथ ने कहा है –“वाक्यम् रसात्मकं काव्यम्” अर्थात् सरस
वाक्य समूह को काव्य कहते हैं |
काव्य में भावों की उत्पत्ति होती है | जब किसी
साहित्य को पढ़कर मनुष्य अपनी निजी सत्ता को याद न रखकर, कविता में व्यक्त भावों से
जुड़ जाए तो हमारे मान के स्थायीभाव रस में परिणत हो जाते हैं | इसका पान मन ही मन
किया जा सकता से है | यही काव्य का आनंद रस कहलाता है |
नाट्यशास्त्र के आचार्य भरत मुनि ने रस की
परिभाषा देते हुए कहा है कि –विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगाद्रस निष्पतिः विभाव,
अनुभाव, व्यभिचारीभाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है |
स्थायीभाव- वास्तव में यह भाव
हम सबके हृदय में पहले से ही स्थायी रूप से विद्यमान रहते हैं | काव्य पढ़ने से ये
भाव सुषुप्तावस्था से जागृत हो जाते हैं और रस में बदल जातें हैं | स्थायीभावों की
संख्या नौ है तथा इनके अनुसार ही रसों की संख्या भी नौ है |
क्रम सं॰
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स्थायीभाव
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रस
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१
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रति
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श्रृंगार
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२
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हास
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हास्य
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३
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शोक
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करुण
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४
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क्रोध
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रौद्र
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५
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उत्साह
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वीर
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६
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भय
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भयानक
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७
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जुगुप्सा (घृणा)
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वीभत्स
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८
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विस्मय
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अद्भुत
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९
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निर्वेद
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शान्त
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१०
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वात्सल्य (बाल -रति)
|
वात्सल्य
|
११
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भगवत् रति
|
भक्ति
|
(मुख्य रूप से रस केवल नौ
ही है,किन्तु वात्सल्य एवं भक्ति रस बाद में सम्मिलित हुए हैं|)
1)
संचारी भाव / व्यभिचारी- ये मन में उठने गिरने वाले भाव हैं | स्थायी न
होकर क्षणिक होते हैं | ये अवसर के अनुकूल अनेक स्थायी भावों का साथ देते हैं |
इसलिए इन्हें संचारी अर्थात् साथ-साथ संचरण करने वाला तथा व्यभिचारी अर्थात् एक से
अधिक के साथ रमन करने वाला कहा गया है | स्थायीभावों के साथ-साथ बीच-बीच में जो
मनोभाव प्रकट होते हैं , उन्हें संचारी भाव कहते हैं | ये मनोविकार पानी के
बुलबुलों की भाँति बनते और बिगड़ते हैं |
संचारीभाव की कुल ३३ संख्या
मानी गई है |
2)
विभाव–भाव जागृत करने के कारक को विभाव कहते हैं |
पात्र घटनाएँ, स्थितियाँ विभाव है , जिन्हें देखकर पाठक के हृदय में भाव जागृत
होते हैं | इसके दो भेद हैं-
·
आलंबन विभाव- मूल विषय वस्तु को आलंबन विभाव कहते हैं |
जैसे – रंग-बिरंगी, बेमेल पोषाक पहने , विचित्र- सी शकल बनाए ,वैसी ही टोपी धारण
किए, कुछ अजीब से हरकतें करते , किसी जोकर को देखकर हंसी आना स्वाभाविक है|
·
उद्दीपन विभाव– जो आलंबन द्वारा जागृत भावों को उद्दीप्त करते
हैं , उन्हें उद्दीपन विभाव कहा जाता है |उपर्युक्त उदाहरण
में जोकर की अजीब से हरकतें, हास्यपूर्ण बातें ,
उसकी विचित्र पोषाक उद्दीपन विभाव है | इसी प्रकार सिंह का गर्जन , उसका खुला मुँह
, जंगल की भयानकता , गहराता अँधेरा आदि भी उद्दीपन विभाव हैं |
3)
अनुभाव विभाव–जोकर को देखकर चकित होना , हँसना , ताली बजाना आदि अनुभाव हैं| इसके अलावा
शेर देखकर भयभीत होकर हक्का बक्का होना, रोंगटें खड़े होना ,काँपना, पसीने से तर
बतर होना भी अनुभाव है |
रस के भेद
रस के मुख्यतः 9 भेद
होते हैं :-
(1) श्रृंगार रस -कामभावना का जागृत होना श्रृंगार कहलाता है | स्त्री पुरुष का सहज आकर्षण ही इसका आधार है |
इसे रसराज भी कहते हैं | इसके दो भेद हैं–
§ संयोग श्रृंगार
स्थायी भाव – रति
संयोग श्रृंगारउदाहरण –
बतरस लालच लाल की
मुरली धरी लुकाय |
सौंह करे भौहन हँसे
देंन कहे नटि जाय ||
§ वियोग श्रृंगार
नायक-नायिका या प्रेमी-प्रेमिका के
बिछड़ने के पर नायक नायिका के प्रेम का वर्णन वियोग श्रृंगार है |
उदाहरण-निसि दिन बरसत नैन हमारे
सदा रहति पावस ऋतु हमपे ,
जबते स्याम सिधारे |
(2)
हास्य रस- जहाँ विलक्षण स्थितियों द्वारा हँसी का पोषण हो
वहां हास्य रस की अभिव्यक्ति होती है |
स्थायी भाव – हास्य , उदाहरण –
हाथी जैसा देह है , गैंडे
जैसे खाल |
तरबूजे सी खोपड़ी , खरबूजे
से गाल ||
(3)
वीर रस – उत्साह स्थायी भाव जब विभावों , अनुभवों और
संचारी भावों से पुष्ट होकर आस्वादन के योग्य होता है , तब उसे वीर रस कहते हैं |
उत्साह के चार क्षेत्र पाए
गए हैं – युद्ध , धर्म , दया और दान |
स्थायी भाव – उत्साह ,
उदाहरण –
भाला तन कर यूँ बोल उठा ,
राणा मुझको विश्राम न दे |
मुझको बैरी से हृदय क्षोभ
तू तनिक मुझे आराम न दे ||
(4)
रौद्र रस - क्रोध और प्रतिशोध का भाव जब अनुभावों , विभावों
और संचारी भावों के योग से परिपुष्ट होता है तो रौद्र रस की अभिव्यक्ति होती है |
स्थायी भाव – क्रोध ,उदाहरण-
स्वर में पावक यदि नहीं ,
वृथा वंदन है |
वीरता नहीं , तो सभी विनय
क्रंदन है |
पर जिसके असिघात, रक्त
चन्दन है ,
भ्रामरीउसी का करतीअभिनन्दन
है |
(5)
भयानक रस - जहाँ भय स्थायी भाव पुष्ट हो वहां भयानक रस की
अभिव्यक्ति होती है |
स्थायी भाव – भय ,
उदाहरण-
एक ओर अजगरहिं लखि, एक ओर
मृगराय |
विकल बटोही बीच ही , पर्यो मूरछा खाय ||
(6)
वीभत्स रस - जहाँ किसी वस्तु अथवा दृश्य के प्रति जुगुप्सा
(घृणा ) का भाव हो , वहां वीभत्स रस की अभिव्यक्ति होती है |
स्थायी भाव – जुगुप्सा ,उदाहरण-
सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ
खात निकारत |
खींचत जीमहिं स्यार , अतिहि
आनंद डर धारत||
गीध जांघि को खेदी-खेदी कै
माँस उपारत |
स्वान अँगुरिन का काटि-काटि
के खात विदारत ||
(7)
करुण रस - प्रिय व्यक्ति या वस्तु की हानि का शोक जब
विभाव, अनुभाव, संचारी आदि भावों से पुष्ट होकर व्यक्त होता है , उसे करुण रस कहते
हैं |
स्थायी भाव – शोक ,उदाहरण-
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर ,
छाती धधक उठी मेरी |
हाय ! फूल सी कोमल बच्ची ,
हुई राखकी थी ढ़ेरी|
(8)
अद्भुत रस - आश्चर्यजनक व अद्भुत वस्तु देखने व सुनने से आश्चर्य का
पोषण हो तब अद्भुत रस की निष्पत्ति होती है |
स्थायी भाव – विस्मय ,उदाहरण-
उड़ गया अचानक लो , भूधर
फड़का अपार पारद के पार |
ख शेष रह गए हैं निर्झर
है टूट पड़ा था भू पर अंबर
||
(9)
शान्त रस - संसार के प्रति वैराग्य का भाव रस-अवयवों से
परिपुष्ट होकर शान्त रस की अभिव्यक्ति होती है |
स्थायी भाव – वैराग्य /
निर्वेद ,उदाहरण-
मेरा मन अनंत कहाँ सुख पावै
|
जैसे उड़ि जहाज को पंछी पुनि
जहाज पे आवे ||
सूरदास प्रभु कामधेनु तजि
छेरी कौन दुहावै||
इनके अलावा दो और रस हैं जो
इस प्रकार हैं :-
(1)
भक्ति रस- ईश्वर-प्रेम का भाव रस के अवयवों से पुष्ट हो
रस में परिणत होता है , तो भक्ति रस की अभिव्यक्ति होती है |
स्थायी भाव – भगवत्
रति ,उदाहरण-
मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो
न कोई |
जाके सिर मोर मुकुट , मेरो
पति सोई ||
(2)
वात्सल्य रस - जहाँ बाल-रति का भाव रस अवयवों से परिपुष्ट होकर
रस रूप में व्यक्त होता है , वहां वात्सल्य रस होता है |
स्थायी भाव – बल-रति ,उदाहरण-
तुम्हारी ये दन्तुरित
मुस्कान
मृतक में भी डाल देगी प्राण
|
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गाल
खिल रहे जलजात ||
Seen 😄😄
ReplyDeleteCompleted in fair notebook 😊😊
ReplyDeleteCompleted sir😊
ReplyDeleteSir other than school books story books bhi hai kya???
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