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छाया मत छूना मन -गिरिजाकुमार माथुर


छाया मत छूना मन -गिरिजाकुमार माथुर
निम्नलिखित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर लिखिए:-
1.
यश है या न वैभव हैमान है न सरमाया है
 जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया है
 प्रभुता का शरण बिम्ब केवल मृगतृष्णा है
 हर चंद्रिका में छिपी रात एक कृष्णा है
 जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
 छाया मत छूना । मन होगा दुःख दूना।।
प्रश्न1- मृगतृष्णा का क्या अर्थ है?
उत्तर- मृगतृष्णा का अर्थ है भ्रम छलावा। मनुष्य जीवन भर वस्तुओंमान-सम्मान के पीछे दौड़ता फिरता है। परंतु उसके हाथ कुछ भी नहीं लगता ।
प्रश्न2- यथार्थ के पूजन का क्या अर्थ है?
उत्तर- यथार्थ के पूजन का अर्थ है अतीत और भविष्य के दुखों और सपनों से मुक्त होकर वर्तमान में जो कुछ भी है उसे स्वीकार करना ।
प्रश्न3- ‘चंद्रिका में छिपी रात कृष्णा है’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- कवि कहना चाहता है कि सुख शाश्वत नही है वरन् प्रत्येक सुख का अंत निश्चित है और उसके साथ दुःख भी बांहों में बाहें डाले चलता है ।
प्रश्न.4 कवि एवं कविता का नाम बताओ.
उत्तर. छाया मत छूना मन -गिरिजाकुमार माथुर |
प्रश्न.5 पद की भाषा पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर- भाषा खड़ी बोली हिन्दी है तथा तत्सम शब्दावली है ।
2.
दुविधा हत साहस है दिखता है पंथ नहीं
 देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नही ।
 दुख है न खिला चांद शरद रात आने पर
 क्या हुआ जो खिला फूल रस बसंत जाने पर?
 जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण
 छाया मत छूना । मन होगा दुखी दूना ।
प्रश्न1- पद की भाषा पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर- भाषा खड़ी बोली हिन्दी है तथा तत्सम शब्दावली है ।
प्रश्न2- कवि ने साहस को दुविधा हत क्यों कहा है?
उत्तर- कवि ने साहस को दुविधा हत कहा है क्योंकि व्यक्ति का साहस आशंकाओं और दुविधाओं के चलते नष्ट हो गया है । उसे यह सूझता नहीं है कि जीवन में क्या करना है ।
प्रश्न3- कवि ने पद में क्या संदेश दिया है?
उत्तर- पद में कवि ने अतीत की असफताओं और दुःख से उबरकर वर्तमान को अपनाने की सलाह दी है ।
प्रश्न 4 कवि ने यशवैभवमान आदि को किसके समान बताया है?
उत्तर- कवि ने यशवैभव मान आदि को भ्रमित करने वाली मृगतृष्णा के समान बतायाा है । मनुष्य यश वैभव मान सम्मान के लिए भागता रहता हैकिंतु वह केवल भ्रमित होकर भटकता ही रहता है ।
प्रश्न.4 कवि एवं कविता का नाम बताओ.
उत्तर. छाया मत छूना मन -गिरिजाकुमार माथुर |
प्रश्न उत्तर-
प्रश्न 1- कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर- कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात कही है क्योंकि वस्तुतः वर्तमान ही वास्तविक सत्य है । व्यक्ति को वर्तमान में ही जीना पड़ता है हम अपने वर्तमान से भाग नहीं सकते हैं। अतीत की मधुर यादें या भविष्य के मोहक सपने कुछ समय तक तो हमारा साथ दे सकते है पर अंततः हमें यथार्थ के धरातल पर ही लौटना पड़ता है ।
प्रश्न 2- कवि ने यशवैभवमान आदि को किसके समान बताया है?
उत्तर- कवि ने यशवैभव मान आदि को भ्रमित करने वाली मृगतृष्णा के समान बतायाा है । मनुष्य यश वैभव मान सम्मान के लिए भागता रहता हैकिंतु वह केवल भ्रमित होकर भटकता ही रहता है ।
प्रश्न 3- कवि ने छाया छूने के लिए मना क्यों किया है?
उत्तर- कवि ने छाया छूने के लिए मना किया है क्योंकि जो बीत गया है वह पुनः लौट कर आने वाला नहीं है अतः उसकी याद करने के बजाए हमें वर्तमान में अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए । अतीत की याद हमें दुःख ही देगी ।
प्रश्न 4- ‘‘देह सुखी हो पर मन के दुःख का अंत नही’’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य चाहे कितनी ही भौतिक सुख-सुविधाएं जोड़ लेपर इससे केवल इसकी देह ही सुखी होगी मन नहीं । मन में जो दुःख मौजूद है वह इन कृत्रिम उपायों से मिटने वाला नहीं है ।
प्रश्न 5- कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर- कवि का संदेश है कि वर्तमान में जीवन जीने की कला विकसित करनी चाहिए । वर्तमान को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करना चाहिए । कल्पना लोक में विचरने से कोई लाभ नहीं ।
प्रश्न 6- ‘छाया’ शब्द किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है कवि ने उसे छूने के लिए क्यों मना किया है ।
उत्तर- छाया’ शब्द अतीत की दुविधापूर्ण या भ्रमपूर्ण स्थितियों के लिए प्रयुक्त हुआ है । साथ ही अतीत की स्मृतियों के लिए भी । छायाएं वास्तविकता से दूर होती हैं इनके पीछे भागना दुख को बढ़ावा देना है ।
प्रश्न 7- कविता में व्यक्त दुख के कारण है?
उत्तर- 1. पुरानी खुशियों (सुखों) को याद कर वर्तमान को दुखी करना ।
2. वास्तविकता से सुख छोड़कर कल्पना में जीना ।
3. समय का सही उपयोग न जानना ।
4. वर्तमान जीवन के सुअवसरों का लाभ न उठाना ।
5. दुविधा और भ्रम की मृग तृष्णा में भटक कर दुविधाग्रस्त जीवन बिताना ।

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