1-नेताजी का चश्मा:
नेता जी का
चश्मा पाठ देशभक्ति की भावना से भरपूर्ण कहानी है कहानी में कैप्टन चाश्मेवाले के
माध्यम से देश के करोंड़ों लोगों के देशभक्तिपूर्ण योगदान को उभारा गया है जो अपने –अपने
तरीके से देशभक्ति तो करतें हैं परन्तु वे परदे के पीछे रहा जाते हैं .देशभक्ति की
भावना बड़ों में ही नहीं ,बल्कि बच्चों (आने वाली पीढीयों )में भी भारी हुई है .
2-बालागोबिन भगत :
बालागोबिन भागता नामक पाठ में लेखक रामबृक्ष
बेनीपुरी ऐसे व्यक्ति का रेखाचित्र खींचा है जो ,मानवता , लोकसंस्कृति ,सामूहिक
चेतना तथा करनी कथनी में सभ्यता रखने वाले का प्रतीक हैं । लेखक के अनुसार मनुष्य
कुछ विशिष्ट गुणों के आधार पर सन्यासी हो सकता है पर बाह्य आडंबरों जैसे
वेश,दिखावायुक्त कर्म करने से कोई सन्यासी नहीं होता ।बालगोबिन अपने गुणों एवं
कर्मों के कारण सन्यासी हैं । साथ ही लेखक ने समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराईयों
पर करारा प्रहार किया है ।
3-लखनवी अंदाज़:
लेखक ने इसमें उस सांमती वर्ग पर व्यंग्य किया
है, जो सच्चाई से अंजान है और अपनी बनाई बनावटी
दुनिया में जी रहे हैं। इनके लिए देश, समाज से कोई सरोकार नहीं हैं। इनके लिए इनका
झूठा अभिमान सब कुछ हैं। इस पाठ के नवाब ऐसे ही हैं। अपनी झूठी शान को कायम रखने
के लिए वह खीरों को बिना खाए फेंक देते हैं। नवाब स्वयं जानते थे कि न उनकी हैसियत
और स्थिति ऐसी है कि वह खीरों को फेंके परन्तु लेखक के सम्मुख अपनी शान को नष्ट
होते हुए नहीं देख सकते थे। अतः बिना खाए खीरों को फेंक दिया। इसलिए लेखक ने इस
पाठ को उन्हीं को समर्पित करके इसका नाम लखनवी अंदाज़ रखा।
4-मानवीय करुणा की
दिव्य चमक:
प्रस्तुत संस्मरण फादर कामिल बुल्के पर लिखा गया
है। फादर कामिल बुल्के जन्मे तो रैम्सचैपल,
बेल्जियम (यूरोप) में परन्तु उन्होंने
अपनी कर्मभूमि बनाया भारत को। फादर अपने आप को भारतीय
कहते थे। वे एक संन्यासी थे, परन्तु पारम्परिक अर्थ में नहीं। उनकी नीली आँखे, बाँहें खोल गले लगानेका आतुर रहती थीं, ममता और अपनत्व हर एक प्रियजन के लिए उमड़ता रहता था।
काव्य खण्ड
1-पद –सूरदास
सूरदास के काव्य सूरसागर में संकलित भ्रमरगीत
में गोपियों की विरह पीड़ा को चित्रित किया गया है ।प्रेमसंदेश के बदले श्री कृष्ण
के योग संदेश लाने वाले उध्द्व पर गोपियों ने व्यंग्य बांणों में गोपियों का हृदय
स्पर्शी उलाहना है, श्री कृष्ण के प्रति अन्नय प्रेम प्रक्ट हो रहा
है ।
2. सवैया –कवित्त :देव
कवि ने श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन किया
है जिसमें उनके सामंती वैभव का चित्रण है । साथ में ही बसंत को शिशु रूप में दिखा
कर प्रकृति के साथ एक रागात्मक संबंध की अभिव्यक्ति की है ।तीसरे कवित्त में
पूर्णिमा की रात्रि में चाँद तारों की आभा का चित्रण किया है ।
3.आत्मकथ्य –
यह कविता जयशंकर
प्रसाद द्वारा रचित है । इसे सन १९३२ में हंस नामक पत्रिका के आत्मकथा नामक
विशेषांक में छापा गया था| .लेखक के मित्रों ने उनसे आत्मकथा लिखने का
निवेदन किया था। उसी निवेदन के उत्तर में प्रसादजी ने यह कविता
लिखी थीकवि कहता है कि – यह संसार नश्वर है. हर जीवन एक दिन मुरझाई पत्ती-साझडकर गिर जाता है.इस अनंत संसार में जितने
जीवन हैं , उतनी ही उसकी कहानियाँ हैं . सबके जीवन दुःख से भरे हैं. हर आत्मकथा वाचक अपनी कहानी सुनाकर मानों स्वयं
ही यांग्य करना प्रतीत होता है . तब मैं अपनी जीवन-कथा कैसे कहूँ ? उसमें दुर्बलताएँ ही
दुर्बलताएँ हैं.यहाँ तक की मेरी जीवन –गागरी
खाली है. आत्मकथ्य असहमति के तर्क
से उत्पन्न हुई कविता है | 1932 में हंस पत्रिका में प्रकाशित यह कविता छायावादी शैली में लिखी गई है जीवन के यथार्थ
एवं अभाव पक्ष की मर्सिक अभिव्यक्ति है , उनके जीवन की कथा एक सामान्य व्यकित के जीवन को
कथा है
4.उत्साह
प्रस्तुत कविता में कवि बादल में क्रांति का
स्वर सुनता है।वह गड्गडाते स्वर पर मोहित होकर कहता है-ओ बादल! तुम खूब गरजो,कडको, गडगडाओ। तुम अपनी भयंकर गर्जन-तर्जन से इस आकाश कोघेर लो। तुम्हारे केश कितने सुंदर, काले और घुंघराले हैं। ये कल्पना केविस्तार के समान घने हैं । कवि बादल को कवि
की संग्या देते हुए कहता है-अपने ह्रदय में बिजली की चमक छिपाए हुए ओ कवि! संसार को नयाजीवन देने वाले ओ कवि! तुम अपनी भावनाओं में वज्र छिपाकर समूचेसंसार में जोश का पौरुषमय स्वर भर दो। हे बादल! तुम गरजो, गडगडाओ।
5. अट नहीं रही है –
अट नहीं रही कविता एक प्रकृति सौन्दर्य वर्णन की छायाबदी कविता है जिसमे फागुन
मास की मस्ती पुरानी मधुर शोभा रंग आदि का मनमोहन वर्णन किया गया है |
6. यह दंतुरित मुसकान:
छोटे शिशु की दंतुरित और छल-हीन मुसकान देखकर कवि का वात्सल्य उमड़ पड़ा है| शिशु की दंतुरित मुसकान मृतक अर्थात सर्वथा निराश और उदासीन व्यक्ति में भी जान डाल देती है|शिशु की प्राणवान मुसकान का स्पर्श पाकर कठोर पाषाण भी पिघल जाते,है|छविमान दंतुरित मुसकान देखकर कठोर हृदयी भी भावुक हो उठते हैं|
छोटे शिशु की दंतुरित और छल-हीन मुसकान देखकर कवि का वात्सल्य उमड़ पड़ा है| शिशु की दंतुरित मुसकान मृतक अर्थात सर्वथा निराश और उदासीन व्यक्ति में भी जान डाल देती है|शिशु की प्राणवान मुसकान का स्पर्श पाकर कठोर पाषाण भी पिघल जाते,है|छविमान दंतुरित मुसकान देखकर कठोर हृदयी भी भावुक हो उठते हैं|
7. फसल:फसल है क्या और उसे पैदा करने में किन-किन तत्वों का
योगदान होता है? यही इस कविता
में बताया गया है। कविता के द्वारा स्पष्ट किया गया है कि प्रकृति एवं मुनष्य के
सहयोग से ही सृजन संभव है।
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