उदाहरण-1
‘मानव को मानव के रूप में सम्मानित करके ही हम जातीयता,प्रांतीयता,संकुचित राष्ट्रीयता के संकीर्ण भेड़ों को तोड़ सकते हैं| आज मानव-मानव से दूर हटा चला जा रहा है| वह भूल चुका है कि देश,धर्म और जाती के भिन्न होते हुए भी हम सर्वप्रथम मानव हैं| हम सब समान हैं तथा सभी की भावनाएँ और लक्ष्य एक ही है| आज धर्म, सत्ता,धन आदि का भेद होने से एक मानव दूसरे मानव को मानव ही नहीं मानता| सत्ताधारी वर्ग दूसरों को कुचलकर सारी सुख-सुविधाओं पर एकाधिकार कर लेना चाहता है|एक आकाश के नीचे रहने वाले सभी इंसान एक समान हैं| दया मानवता का सार है| दया छोड़कर सत्य भी सत्य नहीं है| दया प्रेरित असत्य भी व्यावहारिक सत्य है| दया-धर्म मानव-धर्मं है|
(मूल शब्द संख्या - 131 )
उत्तर- शीर्षक- मानव धर्म
सार- देश में व्याप्त जातीयता, प्रांतीयता और संकुचित राष्ट्रीयता के भेदों को मिटाने के लिए मानव-स्वरुप का सम्मान किया जाना चाहिए| आज मानव के मध्यअनेक विषमताएँ हैं| हमें सभी मनुष्यों को एक समान मानकर दया भावना को अपनाना चाहिए| यही मानव धर्मं है |
(संक्षेपित शब्द - 46)
उदाहरण-2
माना कि शरीर ही सब कुछ है, पर यह भी मानिए कि शरीर ही सब कुछ नहीं है।पेट की आग सब पर हावी है ज़रूर,पर दिल की आग भी आग ही है।वह आग जो एक छोटी - सी पूँछ से उचक कर लंका - दहन को उबल पड़ती है और इस अग्निकाण्ड से बचाने वाला बड़भागी कोई विभीषण ही होता है। दिमाग़ के रावण और पेट के कुंभकरण के आलीशान महल आगे दिल के विभीषण की झोपड़ी दुबकी - सकुची पड़ी थी , पर दुनिया ने देखा कि जब सोने की लंका जलकर राख़ हो चुकी,तब भी विभीषण की झोपड़ी ज्यों की त्यों बनी रही।
(मूल शब्द संख्या- 107 )
शीर्षक - शरीर बनाम दिल
संक्षेपण- समस्त कार्यो का आधार शरीर बहुत महत्त्वपूर्ण है पर दिल को अनदेखा नहीं करना चाहिए। दिल की आग पेट से भी भयानक होती है।अत: दिल को भी उचित सम्मान और देखरेख मिलनी चाहिए। ( संक्षेपित शब्द - 39)
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