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स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन-महावीर प्रसाद द्विवेदी


स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन-महावीर प्रसाद द्विवेदी
निम्नलिखित गद्यांश से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प छाँटकर दीजिए-
1.
बड़े शोक की बात हैआजकल भी ऐसे लोग विद्यमान हैं जो स्त्रियों को पढ़ाना गृह सुख के नाश का कारण समझते हैं और लोग भी ऐसे वैसे नहींसुशिक्षित लोग-ऐसे लोग जिन्होने बड़े-बड़े स्कूलों और शायद कॉलेजों में भी शिक्षा पाई हैजो धर्मशास्त्र और संस्कृत के गं्रथ साहित्य से परिचय रखते हैं और जिनका पेशा कुशिक्षितों को सुशिक्षित करनाकुमार्गगामियों को सुमार्गगामी बनाना और अधार्मिकों को धर्मतत्व समझाना है ।
प्रश्न -
1. लेखक किन लोगों से वैचारिक टक्कर लेता है?
2. स्त्री-शिक्षा के विरोधी अपने समर्थन में क्या तर्क देते हैं?
3 लेखक ने शोक की बात किसे माना है -
उत्तर 
1-   लेखक ऐसे लोगों से टक्कर लेना चाहता है जो स्त्रियों को पढ़ाना गृह सुख के नाश का कारण समझते हैं |
2-   स्त्री-शिक्षा के विरोधी अपने समर्थन में तर्क देते हैं कि स्त्रियों को पढ़ने से वे पुरुषों से अधिक प्रभावशाली हो जाएँगी और गृह सुख का नाश हो जायेगा |
3-पढ़े-लिखे लोगों का स्त्री-शिक्षा का विरोध करने को लेखक शोक की बात मानता है |
2.
इसका क्या सबूत है कि उस जमाने में बोलचाल की भाषा प्राकृत न थीसबूत तो प्राकृत के चलन के ही मिलते हैं। प्राकृत यदि उस समय की प्रचलित भाषा न होती तो बौद्धों तथा जैनों के हजारों ग्रंथ उसमें क्या लिखे जाते और भगवान शाक्य मुनि तथा उनके चेले प्राकृत में ही क्यों धर्मोपदेश देते। बौद्धों का त्रिपिटक ग्रंथ’ हमारे महाभारत से भी बड़ा है। उसकी रचना प्राकृत में की जाने का एकमात्र कारण यही है कि उस जमाने में प्राकृत ही सर्व साधारण की भाषा थी। अतएव प्राकृत बोलना और लिखना अपढ़ और अशिक्षित होने का चिह्न नहीं ।
प्रश्न -
1. बौद्धों और जैनों के समय कौन-सी भाषा प्रचलित थी?
2. किसने प्राकृत में उपदेश दिया था?
3.क्या बोलना और पढना अनपढ़ होने का प्रमाण नहीं है ?
उत्तर-
1-बौद्धों और जैनों के समय प्राकृत जन साधारण की भाषा थी |
2-भगवान शाक्य मुनि तथा उनके चेले प्राकृत में ही धर्मोपदेश देते थे |
3-प्राकृत बोलना और पढना अनपढ़ होने का प्रमाण नहीं है |
3.
पुराने जमाने में स्त्रियों के लिए कोई विश्वविद्यालय न था । फिर नियम-प्रणाली का उल्लेख आदि पुराणों में न मिले तो क्या आश्चर्य । औरउल्लेख उसका कहीं रहा होपर नष्ट हो गया हो तोपुराने जमाने में विमान उड़ते थे । बताइए उनके बनाने की विधि बताने वाले कोई शास्त्र! बड़े बड़े जहाजों पर सवार होकर लोग द्वीपांतरों को जाते थे । दिखाइए जहाज बनाने की नियम-प्रणाली के दर्शक ग्रंथ! पुराणादि में विमानों और जहाजों द्वारा की गई यात्राओं के हवाले देखकर उनका अस्तित्व तो हम बड़े गर्व से स्वीकार कर लेते हैं परन्तु पुराने ग्रंथों में अनेक प्रगल्भ पंडिताओं के नामोल्लेख देखकर भी कुछ लोग भारत की तत्कालीन स्त्रियों को मूखर्अपढ़ और गवांर बताते हैं ! इस शास्त्रज्ञता और इस न्यायशीलता की बलिहारी! वेदों को प्रायः सभी हिंदू ईश्वरकृत मानते है। सो ईश्वर तो वेद-मंत्रों की रचना अथवा उसका दर्शन विश्ववरा आदि स्त्रियों से करावे और हम उन्हे ककहरा पढ़ाना भी पाप समझें ।
प्रश्न -
1. स्त्रियां के लिए पुराने ज़माने में क्या नहीं था ?
2. स्त्री-शिक्षा के विरोध में क्या तर्क दिया गया है ?
3. स्त्री शिक्षा के उल्लेख न मिलने का कारण हो सकता है ?
उत्तर 
1-पुराने ज़माने में स्त्रियों को पढ़ाने के लिए कोई विश्वविद्यालय नहीं था ?
2-स्त्रियों के पढ़ाने के लिए कोई नियमबद्ध प्रणाली का नहीं होना |
3-स्त्री-शिक्षा का उल्लेख नहीं मिलता क्योंकि हो सकता है नष्ट हो गया हो |
4.
शिक्षा बहुत व्यापक शब्द है उसमें सीखने योग्य अनेक विशयों का समावेश हो सकता है । पढ़ना लिखना भी उसी के अंतर्गत है । इस देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली अच्छी नहीं । इस कारण यदि कोई स्त्रियों को पढ़ाना अनर्थकारी समझंे तो उसे उस प्रणाली का संशोधन करना या कराना चाहिएखुद पढ़ने लिखने को दोश नहीं देना चाहिए । लड़कों की ही शिक्षा प्रणाली कौन सी अच्छी है । प्रणाली बुरी होने के कारण क्या किसी ने यह राय दी है कि सारे स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए जाएंआप खुशी से लड़कियों और स्त्रियों की शिक्षा प्रणाली का संशोधन कीजिए । उन्हे क्या पढ़ाना चाहिएकितना पढ़ाना चाहिएकिस तरह की शिक्षा देना चाहिए और कहां पर देना चाहिए-घर में या स्कूल में-इन सब बातों पर बहस कीजिएविचार कीजिएजी में आवे सो कीजिए पर परमेश्वर के लिए यह मत कहिए कि स्वयं पढ़ने-लिखने में कोई दोश है-वह अनर्थकर हैवह अभिमान उत्पादक हैवह गृह-सुख का नाश करने वाला है। ऐसा कहना सोलहों आने मिथ्या है ।
प्रश्न -
1. किस शब्द की व्यापकता की बात की गई है-
2. यदि कोई शिक्षा प्रणाली स्त्रियों की शिक्षा अनर्थकारी बताए तो-
3. इस अंश के पाठ का नाम है-
उत्तर
1-‘शिक्षा’ शब्द की व्यापकता की चर्चा की गई है |
2-यदि कोई शिक्षा प्रणाली स्त्रियों की शिक्षा को अनर्थकारी बताए तो उसमे संशोधन करना चाहिए |
3-स्त्री शिक्षा के विरोधी तर्कों का खंडन |
लघूत्तरीय प्रश्न -
प्रश्न 1. लेखक ने किस साक्ष्यों के द्वारा यह प्रमाणित किया है कि उस काल में जनसाधारण की भाषा प्राकृत थी?
उत्तर - लेखक ने निम्नलिखित साक्ष्यों के आधार पर प्रमाणित किया है कि उस काल की जनसाधारण की भाषा प्राकृत थी ।
अ  बौद्धों और जैनों के हजारों ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं ।
ब  भगवान शाक्य मुनि और उनके शिष्यों ने धर्मोपदेश प्राकृत में ही दिए ।
स  बौद्धों का त्रिपिटक ग्रंथ प्राकृत में रचा गया । यह हमारे महाभारत से भी बड़ा है ।
द  गाथा-सप्तशतीसेतुबंध महाकाव्य और कुमारपाल चरित्र आदि ग्रंथपंडितों ने प्राकृत में ही रचे हैं ।
प्रश्न 2. लेखक ने नाटको में स्त्रियों के प्राकृत बोलने को उनके अपढ़ होने का प्रमाण क्यों नहीं माना?
उत्तर - लेखक ने नाटकों में स्त्रियों के प्राकृत बोलने को उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं माना क्योंकि तब स्त्रियां संस्कृत नही बोल सकती थी। संस्कृत न बोलना अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। फिर नाटक जिस के काल के हैंउस काल में जनसामान्य की प्रचलित भाषा संस्कृत नहीं थी। प्राकृत के प्रचलन के पर्याप्त सबूत मिलते हैं।
प्रश्न 3. स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरूषों के लिए पीयूष का घूंट क्यों बताया है?
उत्तर - सुशिक्षित स्त्रियों ने शास्त्रार्थ में पूजनीय महापुरूषों का मुकाबला कर उन्हें पराजित कर दिया। इसीलिए पुरूष प्रधान समाज के लिए स्त्रियों का पढ़ाना विश का घूंट और पुरूषों का पढ़ना उनके लिए अमृतपान है। दूसरे शब्दों में लेखक उन पुरूषों पर व्यंग्य कर रहा है जो स्त्री-शिक्षा के विरोधी है । स्त्रियों ने शास्त्रार्थ में विद्वान माने जाने वाले पुरूषों को पराजित किया इसीलिए उनके लिए स्त्रियों को पढ़ाना कालकूट है। ऐसे लोग केवल पुरूषों की शिक्षा के समर्थक है ।
प्रश्न 4. शिक्षा बहुत व्यापक शब्द कैसे है?
उत्तर - शिक्षा के अंतर्गत अनेक विषयों का समावेश हो सकता है । इसमें भाषाअर्थशास्त्रविज्ञानसमाजशास्त्रइतिहासधर्म नीतिराजनीतिशास्त्र आदि विशयों का अध्ययन किया जा सकता है । पढ़ना-लिखना भी उसी के अंतर्गत आता हैं । इस प्रकार शिक्षा बहुत व्यापक शब्द है ।
प्रश्न 5 ‘‘निरक्षर स्त्री समाज की उन्नति में बाधा है ।’’ इस विषय में अपना मत प्रकट कीजिए
उत्तर - किसी भी समाज में स्त्री और पुरूश दोनों का महत्व है । स्त्री के पढ़ने-लिखने से समाज की उन्नति में बाधा नहींविकास होगा । कोई भी पढ़ी-लिखी स्त्री समाज की उन्नति में बेहतर सक्रिय भूमिका निभाएगी । उसे बाधक समझना ही संकीर्ण दृष्टिकोण या स्वार्थ हो सकता है । साक्षर स्त्री तो आने वाली पीढ़ी का अच्छी तरह मार्ग दर्शन कर सकती है ।
प्रश्न 6 स्त्री शिक्षा का विरोध करने वाले कौन-कौन से कुतर्क देते है?
उत्तर- 1. हमारे इतिहास-पुराणादि में स्त्रिायों को पढ़ाने की नियम-प्रणाली नहीं मिलतीजिससे स्पष्ट होता है कि उस समय स्त्रियों को पढ़ाने की चाल नही थी ।
       2. पुराने संस्कृत कवियों के नाटकों में कुलीन स्त्रियां भी अनपढ़ों की भाषा में बातें करती थीं ।
3.स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होता है। शकुंतला द्वारा दुष्यंत को कटु वचन कहनापढ़ाई का हीदुष्परिणाम था।
4. शकुतंला द्वारा रचा गया श्लोक अपढ़ों की भाषा का थाअतः स्त्रियों को तो अपढ़गवांरों की भाषापढ़ाना भी उन्हें बरबाद करना है ।
प्रश्न 7. कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थो । द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री शिक्षा का समर्थन किया है?
उत्तर - द्विवेदी जी ने निम्नलिखित तर्क देकर स्त्री शिक्षा का समर्थन किया-
 1. नाटकों में स्त्रियों द्वारा प्राकृत बोलना तथा संस्कृत न बोल पाना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। प्राकृतउस समय की प्रचलित भाषा थी। बौद्ध और जैन ग्रंथ प्राकृत में ही लिखे गए है। गाथा-सप्तशतीसेतुबंध महाकाव्य प्राकृत में लिखे गए हैं।
 2. पुराने जमाने में स्त्री शिक्षा की नियमब - प्रणाली न होने या उसका प्रमाण उपलब्ध न होने का अर्थ यह नहीं कि उस समय स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था । यह भी संभव है कि प्रमाण नष्ट हो गए हों ।
 3. वेद रचना में योगदानबौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक मेंथेरी गाथा में पद्य-रचना में योगदानअत्रि की पत्नी का धर्म पर पांडित्य प्रदर्शनगार्गी का ब्रह्मवादियों को हराना आदि सिद्ध करते हैं कि उस समय स्त्रियां सुशिक्षित थीं
प्रश्न 8 स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं - कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया हैअपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर- द्विवेदी जी ने इस दलील का खंडन निम्नलिखित रूप में किया है-
1. यदि स्त्रियों के पढ़ने से अनर्थ होता हैतो पुरूषों के द्वारा किया गया अनर्थ भी शिक्षा के कारण ही माना जाना चाहिए । चोरी डाकाहत्या आदि पढ़ने लिखने का परिणाम मानकर सभी स्कूलकॉलेज आदि बंद कर दिए जाने चाहिए ।
2. द्विवेदी जी ने दूसरा तर्क देते हुए कहा कि दुष्यंत के प्रति शंकुलता के कटुवचन उसकी शिक्षा के कारण नही हैबल्कि अपमानित स्त्री के हृदय से निकला स्वाभाविक क्रोध है ।
3. पढ़ने में अनर्थ का बीज बिल्कुल नही है । अनर्थ तो पढ़े-लिखे तथा अनपढ़ों दोनों से ही हो जाते हैं । स्त्रियों को अवश्य पढ़ाना चाहिए ।
प्रश्न 9 पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है - स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना उनके अनपढ़ होने का सबूत नहीं है क्योंकि-
 1. प्राकृत उस समय जन-साधारण की भाषा थी ।
 2. बौद्धों तथा जैनों के हजारों ग्रंथगाथासप्तशतीकुमारपालचरित महाकाव्य आदि की रचना प्राकृत में हुई है।
 3. भगवान शाक्य मुनि तथा उनके चेलों ने प्राकृत में ही धर्मोपदेश दिए हैं ।
 4. प्राकृत उस समय आज की हिंदीबंगला आदि भाषाओं की तरह ही जनता की भाषा थी । अतः स्त्रियों द्वारा प्राकृत में बोलना उनके अपढ़ होने का सबूत नहीं है ।
प्रश्न 10 परंपरा के उन्ही पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरूष समानता को बढ़ाते हों- तर्क सहित उत्तर दीजिए ।
उत्तर परंपरा का जो भाग सड़-गल चुका हैजिसका अब कोई अर्थ नहीं रह गया अथवा जो मान्यतापरंपरा आधुनिक युग में निरर्थक हो गई हैउन्हे रूढ़ि मानकर छोड़ देना चाहिए । हमें परंपरा के उन्ही पक्षों को स्वीकार करना चाहिए जो स्त्री पुरूष समानता में वृद्धि करते हैं ।
प्रश्न 11 द्विवेदी जी ने किस आधार पर रूक्मिणी को अपढ़ आौर गंवार नहीं माना?
उत्तर द्विवेदी जी ने श्रीमद्भगवत के दशम स्कंध के उत्तरार्द्ध के तिरपनवें अध्याय की रूक्मिणी-हरण की कथा में रूक्मिणी द्वारा श्री कृष्ण को लिखे गए लंबे-चौड़े प्रेम-पत्र के आधार पर उसे अपढ़ और गंवार नहीं माना है । इस प्रेम-पत्र में रूक्मिणी का जो पांडित्य दिखाया हैवह उसके सुशिक्षित होने का प्रमाण है । यह पत्र प्राकृत में नहीं संस्कृत में लिखा गया है ।
प्रश्न 12 ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन पाठ का उद्देश्य क्या है?
उत्तर इस पाठ का उद्देश्य पुरातनपंथियों के स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का जोरदार खंडन करते गए स्त्री-शिक्षा का मर्दन करना है । लेखक ने स्त्री-शिक्षा को व्यर्थ अथवा समाज के विघटन का कारण मानने वाले पुरातन पंथियों के रूढ़िग्रस्त विचारों और कुतर्को का अपने सटीक तर्कों के द्वारा खंडन किया है तथा स्त्री शिक्षा के समर्थन में इतिहास प्राचीन ग्रंथों से उदाहरण प्रस्तुत किए हैं । परंपरा का जो हिस्सा सड़-गल चुका हैउसे रूढ़ि मानकर छोड़ देने की बात पर बल दिया है ।

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