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प्रेमचंद के फटे जूते/गद्यांश


प्रेमचंद के फटे जूते

तुम मुझ पर या इस सभी पर हँस रहे हो उन पर ऊँगली छिपाए और तलुआ घिसाए चल रहे हैं ,उन पर जो टीले को बरकरार बाजू से निकल रहे हैं | तुम कह रहे हो मैंने तो ठोकर मार- मारकर जूता फाड़ लिया ऊँगुली बाहर निकल आई,पर पाँव बचा रहा और मैं चलता रहा, मगर तुम ऊँगुली को ढाँकने की चिंता में तलुवे का नाश कर रहे हो | तुम चलोगे कैसे ?
प्रश्न
) प्रेमचंद किन पर और क्यों हँस रहे थे ?
) टीले को बरकरार बाजू से निकलने से क्या तात्पर्य हैं ?
) प्रेमचंद ने यह क्यों कहा कि मैं चलता रहा ?
) प्रेमचंद को यह चिंता क्यों हैं कि तुम चलोगे कैसे ?
) लेखक क भाव किस प्रकार के हैं ?

उत्तर
 ) प्रेमचंद उन सब पर हँस  रहे जो अपनी कमजोरियों छिपाते हैं तथा दिखावा करते हैं | इस प्रकार ये लोग अपना ही नुकसान करते हैं | ये लोग उंगली ढंकने की चिंता में तलुआ घिसा देते हैं |

) इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता हैं कि आज समाज में हम लोग समस्याओं को अनदेखा करते हैं | उन का कोई हल नहीं निकालते हैं | हम समझोतवादी बनकर उनसे बच निकलते हैं |

) प्रेमचंद ने वह इसलिए कहा कि वे समस्याओं से झुझते रहे हैं तथा जमम्ने को ठोकर मारकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे हैं | उन्होने कभी किसी प्रकार का दिखावा नहीं किया | वे जिस हाल में रहे सदा सहज भाव से  निरंतर आगे बढ़ते रहे हैं |

) प्रेमचंद को यह चिंता इसलिए हैं की आजकल लोग आडंबर अधिक करते हैं | अपनी प्रदर्शनप्रियता के कारण वे जीवन में संघर्ष करने के स्थान पर निरंतर समझोते करते चलते हैं | इस कारण वे अपने लक्ष्य तक भी पहुँच पाते |

) लेखक के भाव व्यंग्य से भरे हैं जिन में पीड़ा के भाव छिपे हैं | 

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