कृतिका (पूरक पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर)
साना साना हाथ जोड़ि-मधु कांकरिया
प्रश्न 1- गन्तोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ क्यों कहा गया?
उत्तर- ‘मेहनतकश का अर्थ है-कड़ी मेहनत करने वाले। ‘बादशाह’ का अर्थ है-मन की मर्जी के मालिक। गंतोक एक पर्वतीय स्थल है। पर्वतीय क्षेत्र होने के नाते यहां स्थितियां बड़ी कठिन है। अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए लोगों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। यहां के लोग इस मेहनत से घबराते नहीं और ऐसी कठिनाइयों के बीच भी मस्त रहते हैं। इसलिए गन्तोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ कहा गया।
प्रश्न 2- जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहां की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्वपूर्ण जानकारी दी, लिखिए ।
उत्तर- जितेन नार्गे उस वाहन (जीप) का गाइड-कम-ड्राइवर था, जिसके द्वारा लेखिका सिक्किम की यात्रा कर रही थी। जितेन एक समझदार और मानवीय संवेदना से युक्त व्यक्ति था। उसने लेखिका को सिक्किम की प्राकृतिक व भौगोलिक स्थिति तथा जन जीवन के विषय में अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां दी। उसने बताया की सिक्किम बहुत ही खूबसूरत प्रदेश है और गन्तोक से युमथांग की 149 किलोमीटर की यात्रा में हिमालय की गहनतम घाटियां और फूलों से लदी वादियां देखने को मिलती हैं। सिक्किम प्रदेश चीन की सीमा से सटा है ।
पहले यहां राजशाही थी । अब यह भारत का एक अंग है । सिक्किम के लोग अधिकतर बौ - धर्म को मानते हैं और यदि किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु हो जाए तो उसकी आत्मा की शांति के लिए एक सौ आठ पताकाएं फहराई जाती हैं । यहां के लोग बड़े मेहनती हैं । इसलिए गन्तोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का नगर’ कहा जाता है और यहां की स्त्रियां भी कठोर परिश्रम करती हैं । वे अपनी पीठ पर बंधी डोके (बड़ी टोकरी) में कई बार अपने बच्चे को भी साथ रखती है । यहां की स्त्रियां चटक रंग कपड़े पहनना पसंद करती है और उनका परम्परागत परिधान ‘बोकू’ है ।
प्रश्न 3- ‘‘कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं ’’ इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
उत्तर- लेखिका ने यह कथन उन पहाड़ी श्रमिक महिलाओं के विषय में कहा है, जो पीठ पर बंधी डोको (बड़ी टोकरी) में अपने बच्चों को सम्भालते हुए कठोर श्रम करती हैं ऐसा ही दृश्य वह पलामु और गुमला के जंगलो में भी देख चुकी थी, जहां बच्चे को पीठ पर बांधे पत्तों तेंदू के - की तलाश में आदिवासी औरतें वन-वन डोलती फिरती हैं। उसे लगता है कि ये श्रम सुंदरियां ‘वेस्ट एट रिपेईन्ग’ हैं, अर्थात् ये कितना कम लेकर समाज को कितना अधिक लौटाती हैं । वास्तव में यह एक सत्य है कि हमारे ग्रामीण समाज में महिलाएँ बहुत कम लेकर समाज को बहुत अधिक लौटाती हैं । वे घर बाहर भी सम्भालती हैं, बच्चों की देखभाल भी करती हैं और श्रम करके धनोपार्जन भी करती हैं । यह बात हमारे देश की आम जनता पर भी लागू होती है । जो श्रमिक कठोर परिश्रम करके सड़को, पुलों, रेलवे लाइनों का निर्माण करते हैं या खेतों में कड़ी मेहनत करके अन्न उपजाते हैं, उन्हें बदले में बहुत कम मजदूरी या लाभ मिलता है । लेकिन उनका श्रम देश की प्रगति में बड़ा सहायक होता है हमारे देश की आम जनता बहुत कम पाकर भी देश की प्रगति में अहम भूमिका निभाती है ।
प्रश्न 4 - आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है? इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए?
उत्तर - आज की पीढ़ी पहाड़ी स्थलों में अपना विहार स्थल बना रही है । वहां भोग के नए-नए साधन पैदा किए जा रहे हैं। इसलिए जहां एक ओर गन्दगी बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर तापमान में वृद्धि हो रही है। परिणामस्वरूप पर्वत अपनी स्वाभाविक सुंदरता खो रहे हैं । इसे रोकने में हमे सचेत होना चाहिए । हमें ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे पहाड़ों का प्राकृतिक सौंदर्य नष्ट हो, गन्दगी फैले और तापमान में वृद्धि हो।
प्रश्न 5 - लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक सी क्यों दिखाई दी?
उत्तर - सिक्किम में एक जगह का नाम है - ‘कवी-लोंग स्टाक’ । कहा जाता है कि यहाँ गाइड फिल्म की शूटिंग हुई थी । वहीं एक घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका ने उसके बारे में पूछा तो पता चला कि यह धर्मचक्र है । इसे घुमाने पर सारे पाप धुल जाते हैं । जितेन की यह बात सुनकर लेखिका को ध्यान आया कि पूरे भारत की आत्मा एक ही है । इस स्थिति को देखकर लेखिका को लगता है कि धार्मिक आस्थाओं, पाप-पुण्य और अंधविश्वासों के बारे में सारे भारत में एक जैसी मान्यताएँ है ।
प्रश्न 6 - कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर - यहाँ पहाड़ी रास्तों पर कतार में लगी श्वेत (सफेद) पताकाएँ दिखाई देती हैं । ये सफेद बौ - पताकाएँ शांति और अहिंसा की प्रतीक है । इस पर मंत्र लिखे होते हैं । ऐसी मान्यता है कि श्वेत पताकाएँ किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु पर फहराई जाती हैं उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से बाहर किसी पवित्र स्थान पर 108 श्वेत पताकाएँ फहरा दी जाती है, जिन्हें उतारा नहीं जाता । वे धीरे-धीरे स्वयं नष्ट हो जाती हैं । किसी शुभ कार्य को आरम्भ करने पर रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं ।
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