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पाठों का सार कक्षा -10

1.       एक कहानी यह भी :
आत्मकथ्य शैली में लिखे गए इस पाठ में लेखिका ने उन व्यक्तियों और घटनाओं के बारे में लिखा है जिन्होंने उनके लेखकीय व्यक्तित्व के निर्माण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।काले रंग की, दुबली-पतली तथा मरियल-सी होने के कारण लेखिका को गोरापन तथा खूबसूरती पसंद करने वाले अपने पिता की उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। समाज में विशिष्ट दर्जा हासिल करने के लिए एक तरफ तो पिता ने लेखिका को उच्च-शिक्षा दिलाई तथा घर पर आने वाले बुद्धिजीवियों के बीच लेखिका को बैठाकर देश-दुनिया की परिस्थितियों पर होने वाली बहस व चर्चा में शामिल किया लेकिन दूसरी तरफ सामाजिक छवि को बनाए रखने के लिए उन्होने उसे स्वतन्त्रता आंदोलन का हिस्सा बनकर सड़क पर जुलूस निकालने व भाषण बाजी करने से रोका। पिता के उपेक्षित व्यवहार तथा दोहरे व्यक्तित्व ने लेखिका को विद्रोही स्वभाव का बना दिया।
       माँ का ममतालु स्वभाव, सहनशीलता, धैर्य  व मजबूरी में लिपटा त्याग लेखिका का आदर्श न बन सका।कॉलेज की हिन्दी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने उन्हें जैनेन्द्र, अज्ञेय, यशपाल, प्रेमचंद आदि की रचनाएँ पढ़ने के लिए प्रेरित किया। साथ ही लेखिका के मन में देश की आजादी के लिए जोश और जुनून भी पैदा किया। जिससे लेखिका के व्यक्तित्व में संघर्षशीलता तथा जुझारूपन आ गया। फलस्वरूप, उन्होंने स्वतन्त्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की तथा महान साहित्यकार बनीं।
2.   स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन:
       इस निबंध में लेखक ने स्त्री-शिक्षा के विरोधियों को खरी-खरी सुनाई है| स्त्री-शिक्षा के विरोधियों ने स्त्री-शिक्षा को गृह सुख का नाश मानते हैं | वह प्राचीन संस्कृति  नाटकों में स्त्रियों द्वारा संस्कृति न बोलकर प्राकृत बोलना, शकुन्तला के द्वारा दुष्यंत को कटु श्लोक लिखकर अनर्थ करना,स्त्री-शिक्षा के पर्याप्त प्रमाण न मिलने आदि के कारण समाज में स्त्रियों को शिक्षा प्रदान न करने की वकालत करतें हैं| अतः लेखक ने अपने अकाट्य तर्कों द्वारा उनकी दलीलों का खंडन किया है |
3.   नौबत खाने में इबादत :
नामक पाठ व्यक्ति चित्र है। इसमें बिस्मिला खाँ के परिचय देनेके साथ ही उनकी रूचियों व उनके अंतर्मन की बुनावट, संगीत की साधना और लग्न को संवेदनशील भाषा में प्रस्तुत किया है । उनके लिए अभ्यास और गुरु शिष्य परंपरा, तन्मयता, धैर्य और संयम को जरूरी बताया है ।
4.       संस्कृति  :
संस्कृति निबंध हमे सभ्यता और संस्कृति से जुड़े अनेक जटिल प्रशनों से टकराने की प्रेरणा देती है। इस निबंध मे लेखक ने अनेक उदाहरण देकर ये बताने का प्रयास किया है की सभ्यता और संस्कृति किसे कहते है,दोनों एक ही वस्तु है अथवा अलग-अलग। वे सभ्यता और संस्कृति का परिणाम मानते हुए कहते है की मानव संस्कृति अविभाज्य वस्तु है। उन्हे संस्कृति का बंटवारा करने वाले लोगो पर आश्चर्य  होता है और दुख भी। उनकी दृष्टि मे जो मनुष्य के लिए कल्यानकारी नहीं है , वह न सभ्यता है और न संस्कृति । 
काव्य-खंड
1.       राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
यह अंश रामचरितमानस के बाल कांड से लिया गया है। सीता स्वयंवर में राम द्वारा शिव-धनुष भंग के बाद मुनि परशुराम को जब यह समाचार मिला तो वे क्रोधित होकर वहाँ आते हैं। शिव-धनुष को खंडित देखकर वे आपे से बाहर हो जाते हैं। राम के विनय और विश्वामित्र के समझाने पर तथा राम की शक्ति की परीक्षा लेकर अंतत: उनका गुस्सा शांत होता है। इस बीच राम, लक्ष्मण और परशुराम के बीच जो संवाद हुए उस प्रसंग को यहाँ प्रस्तुत किया गया है। परशुराम के क्रोध भरे वाक्यों का उत्तर लक्ष्मण व्यंग भरे वचनों से देते है। इस प्रसंग की विशेषता है लक्ष्मण की वीर रस से पगी व्यंग्योक्तियाँ और व्यंजना शैली की सरस अभिव्यक्ति। 
2.       छाया मत छूना
कविता के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जीवन में सुख और दुख दोनो की उपस्थिति है | बीते हुए सुख को याद कर वर्तमान के दुख को और गहरा करना तर्कसंगत नहीं है | कवि अतीत की स्मृतियों के सहारे न जीकर यथार्थ और वर्तमान को अपने अनुकूल बनाने की प्रेरणा देता है और अपने मन को संबोधित करता है कि जो समय अतीत बन चुका है उसकी स्मृतियों में न जिएँ | कल्पनाओं के सहारे जीना उचित नंही है | स्मृतियों में जीने से दुख की अनुभूति अधिक होगी | अतीत की स्मृतियों से सजी यामिनी जो चंद्रिका में फूलों से सुसज्जित केश, जिसके स्पर्श मात्र से प्रत्येक क्षण जीवंत हो उठता था, उसकी मात्र स्मृति-सुगंध शेष है | वह अब यथार्थ नहीं है | एक छाया की तरह है|
3.   कन्यादान :
इस कविता में माँ, बेटी को परंपरागत आदर्श रूप से हट कर जीने की सीख दे रही है ।कवि यह मानता है कि समाज व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के लिए जो व्यवहार संबंधी जो प्रतिमान गढ लिए जाते हैं उन्हे आदर्श के मुलम्बे में बाँधता हैं । कोमलता के गौरव में कमजोरी का उपहास छुपा रहता है । बेटी माँ के सबसे निकट और उसकी सुख दुख की साथी होती है वही उसकी अंतिम पूंजी है । इसा कविता में कोरी भावुकता ही नहीं बल्किमाँ के संचित अनुभवों की पीडा का प्रमाणिक अभिव्यक्ति है ।
4.   संगतकार कविता :
इस कविता में उन व्यक्तियों को दर्शाया गया है जो मुख्य गायक के स्वर में स्वर मिलाकर उसके स्वर को गति प्रदान करते हैं ।संगतकार मुख्य गायक को उस समय सहारा देता है जब उसका स्वर भारी हो जाता है । कभी कभी तो मुख्य गायक को उत्साह प्रदान करता है जब उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगता है ।

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