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कन्यादान – ऋतुराज


कन्यादान – ऋतुराज
 काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
1.
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए हैं
जलने के लिए नहीं
वस्त्रा और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंध्न है स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।
प्रश्न 1. लड़की होने से क्या आशय है?
उत्तर - लड़की होने से आशय हैलड़की जैसे गुणों का होना। मन से सरलभोलीसमर्पणशील होना।
प्रश्न 2. माँ ने यह क्यों कहा कि फ्आग रोटियाँ सेंकने के लिए हैं जलने के लिए नहीं?
उत्तर- माँ ने यह इसीलिए कहा क्योंकि उसके मन में वे पुरानी घटनाएँ मौजूद रहीं होगी जिनमें घर की बहुओं को जलाकर मार डाला गया था। इसलिए वह अपनी बेटी को समझा रही है।
प्रश्न 3. लड़की जैसी दिखाई मत देना का क्या आशय है?
उत्तर- लड़की जैसी दिखाई मत देना का आशय है कि अपने ऊपर किए जाने वाले अत्याचार को मत सहना। अपना शोषण मत होने देना।
प्रश्न 4. पद की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर -भाषा खड़ी बोली हिंदी है तथा तत्सम शब्दावली है।
प्रश्न.5 कवि एवं कविता का नाम बताओ.
उत्तर. ऋतुराज- कन्यादान |
              2.
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
  लड़की को दान में देते वक्त
  जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
  लड़की अभी सयानी नहीं थी
  अभी इतनी भोली सरल थी
  कि उसे सुख का आभास तो होता था
  लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
  पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
  कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पक्तियों की।
प्रश्न 1. ‘लड़की अभी सयानी नहीं थी’ -से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- कवि कहना चाहता है कि लड़की अभी भोली तथा सरल है उसे दुनिया के छल-प्रपंचों की जानकारी नहीं है।
प्रश्न 2. ‘लड़की को दुख बाँचना नहीं आता था इसका क्या तात्पर्य है?
उत्तर- लड़की को दुःख बाँचना नहीं आता था’ का तात्पर्य है कि लड़की जीवन की आनेवाली जिम्मेदारियों और कष्टों से भली-भांति परिचित नहीं थी।
प्रश्न 3-‘पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की’- से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर- कवि कहना चाहता है कि उसे उसके आगामी जीवन का एक ध्ंुध्ला-सा अहसास था कि उसका जीवन अब कैसा होने वाला हैकिंतु वह सभी बातों से परिचित नहीं थी। उसे केवल आने वाले सुख का अहसास था।
प्रश्न 4. कन्यादान देते वक्त माँ के दुःख को प्रामाणिक क्यों कहा गया है?
उत्तर कन्यादान देते वक्त माँ के दुःख को प्रामाणिक कहा गया है क्योंकि एक नारी होने के नाते अपने घर छोड़ने का दुःख वह सबसे अच्छी तरह से जानती है। वह जानती है कि उसकी लड़की के जीवन में कैसे-कैसे मोड़ आने वाले हैं।
प्रश्न 5. ‘कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पक्तियों की’ - आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर इसका तात्पर्य है कि बेटी अभी केवल सहज भावों को ही समझ पाती है। स्नेह में पली बढ़ी बेटी को अभी दुखों को सहन करने की सामर्थ्य नहीं है।
लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर - माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दी -
 1. कभी अपनी सुंदरता और प्रशंसा पर मत रीझना।
 2. गहनों और कपड़ों के बदले अपनी आजादी मत खोना।
 3. त्यागीसरलभोलीस्नेही होनापर अत्याचार न सहना।
प्रश्न 2. माँ ने ऐसा क्येां कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना?
उत्तर माँ चाहती थी कि उसकी बेटी लड़की होने काबहू होने का हर फर्ज़ निभाएपर साथ-साथ वह यह भी चाहती थी कि उसकी बेटी कोई अत्याचार न सहे और कोई उसका पफायदा न उठाए। इसलिए उसने कहा कि लड़की होना पर लड़की पर जैसी मत दिखाई देना।
प्रश्न 3. ‘कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पक्तियों की’ - आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर इसका तात्पर्य है कि बेटी अभी केवल सहज भावों को ही समझ पाती है। स्नेह में पली बढ़ी बेटी को अभी दुखों को सहन करने की सामर्थ्य नहीं है।
प्रश्न 4. कन्यादान देते वक्त माँ के दुःख को प्रामाणिक क्यों कहा गया है?
उत्तर कन्यादान देते वक्त माँ के दुःख को प्रामाणिक कहा गया है क्योंकि एक नारी होने के नाते अपने घर छोड़ने का दुःख वह सबसे अच्छी तरह से जानती है। वह जानती है कि उसकी लड़की के जीवन में कैसे-कैसे मोड़ आने वाले हैं।
प्रश्न 5. वैवाहिक जीवन की त्रासदी क्या हैनव-विवाहिता को ऐसा कब लगने लगता है कि वैवाहिक जीवन मर्यादाओं का बंधन मात्र है?
उत्तर: विवाह से पूर्व लड़की अनेक कल्पनाओं को संजोए रहती है। वर्तमान के अभावों में रहकर वह अपेक्षा करती रहती है कि विवाहोपरान्त मेरे जीवन में परिवर्तन आएगा। अपनी सभी अपेक्षाओं की पूर्ति होगी। यह धरणा धैर्य बनाए रखती है और माँ के घर अभावों में रह रही बेटी विवाह के बाद सुख की ऊँची-ऊँची कल्पनाकामना करती है। विवाह के बाद उसकी कामनाओं पर पानी पिफरता दिखाई देता है तो उसे जीवन त्रासदियों से भरा प्रतीत होने लगता है। यही उसके वैवाहिक जीवन की त्रासदी है। उसकी अपेक्षाओं के अनुसार वैवाहिक-जीवन नहीं होता है और पारिवारिकसामाजिक मर्यादाओं के बंधन में इतना जकड़ दिया जाता है कि पितृगृह में स्नेह से पल रही लड़की घुटन का अनुभव करने लगती है। उस समय ऐसा लगता है कि सम्पूर्ण परिवार की मर्यादा नव-विवाहिता के मर्यादा पालन में है। परिवार का प्रत्येक जन उसे ही सीख देता दिखाई देता है। तब लगता है कि वैवाहिक जीवन मर्यादाओं का बन्धन मात्र है।

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