गंगा किनारे घर हो मेरा,
जहाँ सुकून हर पहर हो मेरा।
दरिया की रवानी में खो जाऊँ,
हर लहर में एक असर हो मेरा।
चाँदनी रातों में जब हवा चले,
ख़्वाबों सा कोई सफ़र हो मेरा।
गंगा की माटी से खेलूँ मैं,
उस मिट्टी में ही मुक़द्दर हो मेरा।
आंगन में तुलसी, दीया जले,
और दिल में रौशन बसर हो मेरा।
कश्ती चले अरमानों की,
हर साहिल पे मुक़ाम-ए-ग़र हो मेरा।
नज़्में कहूँ मैं बहते पानी से,
हर लफ़्ज़ में इक हुनर हो मेरा।
गंगा किनारे घर हो मेरा,
जहाँ खुदा भी मेहरबान हो मेरा।
दलीप सिंह
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