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बालगोबिन भगत


बालगोबिन भगत
(1)
बेटे के क्रिया-कर्म मे तूल नहीं कियापतोहू से ही आग दिलाई उसकीकिन्तु ज्योहीं श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई,पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया,यह आदेश देते हुए की इसकी दूसरी शादी कर देनाइधर पतोहू कहती मैं चली गयी तो बुढ़ापे मे कौन आपके लिए भोजन बनाएगाबीमार पड़े तोकौन एक चुल्लू पानी भी देगालेकिन भगत का निर्णय अटल था |
१-भगत पतोहू को अपने पास क्यों नहीं रखना चाहते थे ?                       
२-पुत्र की चिता की आग भगत ने किससे दिलवाई और क्यों ?                   
३-तूल न देना’ मुहावरे का आशय है  -                                     
उत्तर-
1-   भगत अपनी पतोहू को अपने पास नहीं रखना चाहते थे क्योंकि वे उसके भविष्य को सुखी देखना चाहते थे |
2-   भगत ने अपने पुत्र की चिता में अग्नि अपनी पतोहू से दिलवाई क्योंकि वे कबीर के अनुयायी थे और उन्हीं की तरह समाज में व्याप्त कुरीतियों को नहीं मानते थे और उनका विरोध करते थे |
3तूल न देना’ मुहावरे का अर्थ है- बढ़-चढ़कर काम न करना |
(2)
बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरुप हुईवह हर वर्ष गंगा-स्नान करने जातेस्नान पर उतनी आस्था नहीं रखते जितना संत-समागम और लोक-दर्शन परपैदल ही जातेकरीब तीस कोस पर गंगा थीसाधू को संबल लेने का क्या हक़ औरगृहस्थ किसी से भिक्षा क्यों माँगे अतः घर से खाकर चलतेतो फिर घर पर ही लौटकर खातेरास्ते भर खंजड़ी बजातेगाते जहाँ प्यास लगतीपानी पी लेतेचार-पाँच दिन आने-जाने में लगतेकिन्तु इस लम्बे उपवास में भी वाही मस्ती! अब बुढ़ापा आ गया थाकिन्तु टेक वही जवानी वालीइस बार लौटे तो तबियत कुछ सुस्त थीखाने-पिने के बाद भी तबियत नहीं सुधरीथोडा बुखार आने लगाकिन्तु नेम-व्रत तो छोड़नेवाले नहीं थेवही दोनों जून गीतस्नानध्यानखेतीबारी देखनादिन-दिन छिजने लगेलोगों ने नहाने-धोने से मना कियाआराम करने को कहाकिन्तुहँसकर टाल देते रहेउस दिन भी संध्या में गीत गाएकिन्तु मालुम होता जैसे तागा टूट गया होमाला का एक-एक दाना बिखरा हुआभोर में लोगों ने गीत नहीं सुनाजाकर देखा तो बालगोबिन भगत नहीं रहे सिर्फ़ उनका पंजर पड़ा है !
१-भगत के गंगा-स्नान का मुख्य उद्देश्य क्या होता था                               
२- गंगा-स्नान को आते-जाते वे किसी से न सहारा लेते और न किसी से कुछ माँगते थे क्यों ?
३-सौंदर्य’ का विशेषण क्या होगा                                                
उत्तर-
1.   भगत के गंगा-स्नान का मुख्य उद्देश्य संत-समागम और लोक-दर्शन होता था |
2-क्योंकि भगत स्वभाव से स्वाभिमानी थे और वे मानते थे कि एक गृहस्थ को किसी से सहारा लेने का कोई अधिकार नहीं होता | 
3-  सौन्दर्य’ का विशेषण सुन्दर’ होगा |
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न-1 बालगोबिन भगत की पुत्रबधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी ?
उत्तर- भगत की पुत्रबधू जानती थी कि भगत जी संसार में अकेले हैं और उनका एकमात्र पुत्र मर चुका हैवे बूढ़े है और भक्त हैंउन्हें घर-बार और संसार में कोई रूचि नहीं है अतः वे अपने खाने-पीने और स्वास्थ्य की ओर ध्यान नहीं दे पाएँगेइसलिए वाह सेवा-भाव से उनके चरणों में अपने दिन बिताना चाहती थीवह उनके लिए भोजन और दवा-पानी का प्रबंध करना चाहती थीं|
प्रश्न-2 बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी ?
उत्तर- बालगोबिन भगत की दिनचर्या का प्रत्येक कार्य आश्चर्यजनक होता थाउस दिनचर्या में कहीं भी कोई चूक उनके द्वारा संभव नहीं थीउनकी दिनचर्या लोगों को हैरान कर देती थीलोग भगत जी की सरलतासादगी और निस्वार्थता पर हैरान होते थेभगत जी भूलकर भी किसी से कुछ नहीं लेते थेवे बिना पूछे किसी भी चीज़ को छूते नहीं थेयहाँ तक कि किसी दूसरे के खेत में शौच भी नहीं करते थेलोग उनके इस व्यवहार से मुग्ध थेलोग भगत जी पर तब और भी आश्चर्य करते थे जब वे भोरकाल में उठकर दो-तीन मील दूर स्थित नदी में स्नान कर  आते थेवापसी पर वे गाँव के बाहर स्थित पोखर के किनारे प्रभु -भक्ति के गीत टेरा करते थेउनके इन प्रभावी गानों को सुनकर लोग सचमुच हैरान रह जाते थे |
प्रश्न-3 भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस प्रकार अभिव्यक्त कीं ?
उत्तर - भगत की अपने बेटे की मृत्यु पर भावनाएँ चली आ रही परंपरा से भिन्न थीं उन्होंने अपनी भावनाएँ इस प्रकार अभिव्यक्त कीं-
1-मृतक पुत्र को आँगन में चटाई पर लिटाकर सफ़ेद कपडे से ढँक दिया |
2-मृतक पुत्र के ऊपर फूल और तुलसी के पत्ते बिखेर दिए और सिरहाने एक दीपक जलाकर रख दिया |
3-उसके समीप आसन पर बैठकर हमेशा की तरह कबीर के पदों को गाने और पतोहू को समझाने लगे कि आत्मापरमात्मा में मिल गई है विरहिणी अपने प्रेमी (ईश्वर) से जाकर मिल गई है |
4-पतोहू को समझाने लगे कि यह वक्त रोने का न होकर उत्सव मनाने का है |
प्रश्न-4खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधू कहलाते थे?
उत्तर - बालगोबिन भगत खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ थे उनका साफ़-सुथरा मकान थाफिर भी सर्वथा वे साधुता की श्रेणी में आते थेक्योंकि-
1-वे कबीर को अपना साहब मानते थे |
2-वे कबीर के पदों को ही गाते थेऔर उनके आदेशों पर चलते थे |
3-   वे सभी से खरा व्यवहार रखते थेदो टूक बात कहने में न कोई संकोच करते थेन किसी से झगड़ते थे |
4-   वे अन्य किसी की चीज़ को बिना पूछे व्यवहार में नहीं लाते थे |
5-   वह अपनी प्रत्येक वस्तु पर साहब का अधिकार मानते थे परिश्रम से पैदा की गई फ़सल को पहले साहब को अर्पित करते थेउसके बाद स्वयं प्रयोग करते थे |
इस प्रकार त्याग की प्रवृत्ति और साधुता का व्यवहार उन्हें साधु की श्रेणी में खड़ा कर देता है |
प्रश्न-5 पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है ?
उत्तर - भगत कबीर को ही अपना साहब मानते थे उनके ही निर्देशों का यथा-संभव पालन करते थे कबीर के प्रति उनकी श्रद्धा निम्नलिखित रूपों में प्रकट हुई है-
1-   भगत सिर पर सदैव कबीर-पंथी टोपी पहनते थेजो कनपटी तक जाती थी |
2-   कबीर के रचित पदों को ही गाते थे |
3-   कबीर को ही अपना ईश्वर मानते थे |
4-   वे उन्हीं के बताए आदर्शों पर चलते थे |
5-   उनकी कमाई से जो कुछ पैदा होता था उसे पहले कबीर के दरबार में भेंट करते थे और वहाँ से जो प्रसाद के रूप में प्राप्त होता था उससे ही निर्वाह करते थे |
6-   साहब के प्रति अटूट श्रद्धा थी कि चार कोस दूर कबीर-दरबार में अपनी उपज को लादकर ले जाते थे|
7-   भगत पर कबीर-विचार-धारा इतना प्रभाव कि उन्हीं की तरह रुढियों का विरोध करते थे|
8-   उनकी वेश-भूषा भी कबीर की तरह थी कमर में एक मात्र लंगोटीसिर पर टोपी और सर्दियों में काली कमली ओढ़ते थे |

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