हर सुबह जब बूँदें गिरती हैं,
पत्तों पे मोती-सी ताजगी भरती हैं।
हवा की नरमी गालों को छू जाए,
जैसे माँ की ममता मन में उतर जाए।
सूरज की पहली किरन जब मुस्काए,
हर कली झूम उठे, पंखुड़ी लहराए।
ओस की बूँदों में सपना चमके,
हर घास की नोक पे जीवन दमके।
नदी बहती मंद सुरों में गाती,
पर्वत भी चुपचाप मुस्कुराते।
फिज़ा में महके आम्रवृक्षों का रस,
कोयल बोले जैसे प्रेम का संदेश।
यह प्रकृति न थकी, न कभी थमे,
हर साँस में नई कहानी रमे।
आओ चलें हम उस दिशा में,
जहाँ जीवन का संगीत बहे खुले गगन में।
दलीप सिंह
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