बादल (सूर्य कान्त त्रिपाठी ‘निराला’)
(1)
विकल विकल , उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा जल से फिर
शीतल कर दो-
बादल, गरजो!
प्रश्न 1- तप्त धरा से क्या आशय है ?
उत्तर- इसका प्रतीकार्थ है कि धरती के मनुष्य दुखों से पीड़ित, व्याकुल हैं तथा वे दिन प्रतिदिन के शोषण का शिकार हैं |
प्रश्न 2- इस पद से बादल का पर्यायवाची शब्द छाटकर लिखिए ।
उत्तर- जलद
प्रश्न 3- कवि ने बादल से क्या प्रार्थना की है ?
उत्तर- कवि ने बादल से प्रार्थना करता है कि वह खूब बरसे और इस जग और धरा को शीतल कर दे अर्थात उनके कष्टों को हर ले ।
प्रश्न 4 बादल का अस्तित्व कैसा होता है ?
उत्तर- बादल का आस्तित्व क्षण भंगुर होता है, बाल कल्पना के समान |
प्रश्न 5 - कवि बादल से गरजने के लिए क्यों कह रहा है?
उत्तर- नया उत्साह एवं जोश भरने के लिए और सुखमय जीवन के लिए |
(2)
बादल गरजो! –
घेर घेर घोर गगन, धराधार ओ !
ललित ललित , काले घुँघराले
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत -छवि उर में, कवि नव जीवन वाले
वज्र छिपा , नूतन कविता
फिर भर दो-
बादल, गरजो!
प्रश्न.1 इस पद का मुख्य स्वर क्या है ?
उ-प्रकृति के माध्यम से जीवन में उत्साह का संचार |
प्रश्न-2 ललित काले घुँघराले में प्रयुक्त अलंकार बताइए |
उ-मानवीकरण एवं पुनरुक्ति प्रकाश |
प्रश्न.3 कविता में किस छंद एवं शैली का प्रयोग किया गया है ?
उ- मुक्तक छंद एवं संबोधन शैली |
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1-कविता मे बादल किन– किन अर्थो की ओर संकेत करता है ?
उत्तर- बादल प्यासों की प्यास बुझाने तथा खेतों में जल पहुचाने वाला है । इस अर्थो में वह निर्मांण का प्रतीक है। बादल क्रांति का संदेश लाकर शोषकों का अंत करता हैं । इस अर्थ मे वह विनाश का प्रतीक है।
प्रश्न 2- कवि बादल से फुहार रिमझिम या बरसने के स्थान पर गरजने के लिए क्यों कहता है ?
उत्तर- कवि बादलों को क्रांति या बदलाव का प्रतीक मानता है। बदलाव हेतु तीव्र प्रहार की आवश्यकता होती है। यह कार्य धीमे–धीमे या मृदुता से नही हो सकता । बादलों के गर्जन–तर्जन में ही यह शक्ति निहित है अतः कवि बादल से फुहार रिमझिम या बरसने के स्थान पर गरजने के लिए कहता है।
प्रश्न 3- कवि ने बादलों को नवजीवन वाले क्यों कहा है?
उत्तर- बादल तत्प धरा पर जल बरसा कर धन-धान्य को संभव बनाते हैं साथ ही बादल प्यासों की प्यास बुझाते है।इस तरह एक अर्थ में वे लोगों को नवजीवन प्रदान करते हैं।इसलिए कवि ने उन्हें नवजीवन वाले कहा है।
अट नही रही सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
(1)
अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर पर कर देते हो
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
प्रश्न 1- उपयुक्त पंक्तियों में कवि किसका वर्णन कर रहा हैं ?
उत्तर- फागुन के सौंदय का।
प्रश्न 2-‘अट नहीं रही है’ का प्रयोग यहाँ किसके लिए हुआ है ?
उत्तर- प्रकृति–सौंदय के लिए क्योंकि प्रकृति की शोभा अद्वितीय हैं।
प्रश्न 3- फागुन के साँस लेते ही प्रकृति में क्या परिवर्तन दिखाई देते हैं ?
उत्तरः–संपूर्ण वातावरण सुवासित हो उठा है। प्रकृति पल्लवित,पुष्पित हो गई है।
प्रश्न 4- प्रकृति के परिवर्तन का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ?
उत्तरः– कवि का मन कल्पना की उड़ान भरने लगता है।
प्रश्न 5-’घर– घर’ व ‘पर–पर’ शब्द के द्वारा कवि क्या व्यक्त करना चाहता है ?
उत्तरः– ’घर– घर’ से तात्त्पर्य है संपूर्ण धरा । ‘पर-पर’ शब्द कवि की अति उत्त्साह की मनोवृति को व्यक्त करता है।
(2)
पत्त्तों से लदीपत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल
कहीं पड़ी है
मंद-गंध -पुष्प-माल,
पाट- पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।
प्रश्न 1-पात-पात में कौन सा अलंकार है ?
उत्तरः–पुनरूक्तिप्रकाश अलंकार
प्रश्न 2-उर में पुष्प माल पड़ने का क्या अर्थ है ?
उत्तरः– कवि कहना चाहता है कि फागुन के आगमन से वृक्ष पुष्पों से लद गए हैं।
प्रश्न 3- फागुन की शोभा का वर्णन कीजिए ?
उत्तरः– फागुन की शोभा सर्वत्र व्याप्त हो गई है।वृक्ष पुष्पों से लद गए हैं।उसकी शोभा प्रकृति मे समा नही रही है।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1- कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नही हट रही है ?
उत्तर- प्राचीन काल से ही पुरूष आजीविका के लिए अपने घरों –गाँवों को छोड़कर बाहर जाता रहा हैं। बच्चे की माँ ही उसका पालन– पोषण करती है। पिता से बच्चों का संपर्क कभी– कभी ही हो पाता है,इसलिए कवि ने स्वयं को प्रश्नवासी कहा है।
Seen 😄😄😄
ReplyDelete