Hindi Kshitiz Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
प्रश्न
1.परशुराम
के
क्रोध
करने
पर
लक्ष्मण
ने
धनुष
के
टूट
जाने
के
लिए
कौन-कौन से तर्क दिए?
उत्तर-कवि ने ‘श्री ब्रजदूलह’ ब्रज-दुलारे कृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। वे सारे संसार में सबसे सुंदर, सजीले, उज्ज्वल और महिमावान हैं। जैसे मंदिर में ‘दीपक’ सबसे उजला और प्रकाशवान होता है। उसके होने से मंदिर में प्रकाश फैल जाता है। उसी प्रकार कृष्ण की उपस्थिति से ही सारे ब्रज-प्रदेश में आनंद, उत्सव और प्रकाश फैल जाता है। इसी कारण उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।
प्रश्न
2.परशुराम
के
क्रोध
करने
पर
राम
और
लक्ष्मण
की
जो
प्रतिक्रियाएँ
हुईं
उनके
आधार
पर
दोनों
के
स्वभाव
की
विशेषताएँ
अपने
शब्दों
में
लिखिए।
उत्तर-परशुराम के क्रोध करने पर राम ने अत्यंत विनम्र शब्दों में–धनुष तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा’ कहकर परशुराम का क्रोध शांत करने एवं उन्हें सच्चाई से अवगत कराने का प्रयास किया। उनके मन में बड़ों के प्रति श्रद्धा एवं आदर भाव था। उनके शीतल जल के समान वचन परशुराम की क्रोधाग्नि को शांत कर देते हैं।
लक्ष्मण
का
चरित्र
श्रीराम
के
चरित्र
के
बिलकुल
विपरीत
था।
उनका
स्वभाव
उग्र
एवं
उद्दंड
था।
वे
परशुराम
को
उत्तेजित
एवं
क्रोधित
करने
का
कोई
अवसर
नहीं
छोड़ते
थे।
उनकी
व्यंग्यात्मकता
से
परशुराम
आहत
हो
उठते
हैं
और
उन्हें
मारने
के
लिए
उद्यत
हो
जाते
हैं
जो
सभा
में
उपस्थित
लोगों
को
भी
अनुचित
लगता
है।
प्रश्न
3.लक्ष्मण
और
परशुराम
के
संवाद
का
जो
अंश
आपको
सबसे
अच्छा
लगा
उसे
अपने
शब्दों
में
संवाद
शैली
में
लिखिए।
उत्तर-इसमें ब्रज-दुलारे, नटवर-नटेश, कलाप्रेमी कृष्ण की सुंदर रूप-छवि प्रस्तुत की गई है। उनका रूप मनमोहक है। साँवले शरीर पर पीले वस्त्र और गले में बनमाला है। पाँवों में पाजेब और कमर में मुँघरूदार आभूषण हैं। उनकी चाल संगीतमय है।
अनुप्रास की छटा देखते ही बनती है। शब्द पायल की तरह झनकते प्रतीत होते हैं। यथा
पाँयनि
नूपुर
मंजु
बजें’
में
आनुप्रासिकता
है।
इसका
नाद-सौंदर्य दर्शनीय है।।
:कटि किंकिनि कै धुनि की’ में ‘क’ ध्वनि और ‘न’ की झनकार मिल गए-से प्रतीत होते हैं।
‘पट पीत’ और ‘हिये हुलसै बनमाल’ में भी अनुप्रास है।
‘भाषा’ कोमल, मधुर और संगीतमय है। सवैया छंद का माधुर्य मन को प्रभावित करता है।
प्रश्न
4.परशुराम
ने
अपने
विषय
में
सभा
में
क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए
बाल
ब्रह्मचारी
अति
कोही
बिस्वबिदित
क्षत्रियकुल
द्रोही॥
भुजबल
भूमि
भूप
बिनु
कीन्ही।
बिपुल
बार
महिदेवन्ह
दीन्ही
।।
सहसबाहुभुज
छेदनिहारा।
परसु
बिलोकु
महीपकुमारा॥
मातु
पितहि
जनि
सोचबस
करसि
महीसकिसोर।
गर्भन्ह
के
अर्भक
दलन
परसु
मोर
अति
घोर
॥
उत्तर-परशुराम ने अपने बारे में कहा कि मैं बचपन से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता आया हूँ। मेरा स्वभाव अत्यंत क्रोधी है। मैं क्षत्रियों का विनाश करने वाला हूँ, यह सारा संसार जानता है। मैंने अपनी भुजाओं के बल पर पृथ्वी को अनेक बार जीतकर ब्राह्मणों को दे दिया। सहस्त्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले इस फरसे के भय से गर्भवती स्त्रियों के गर्भ तक गिर जाते हैं। इसी फरसे से मैं तुम्हारा वध कर सकता हूँ।
प्रश्न
5.लक्ष्मण
ने
वीर
योद्धा
की
क्या-क्या विशेषताएँ बताईं ?
उत्तर-इस पंक्ति का भाव है-स्वयं सवेरा वसंत रूपी शिशु को जगाने के लिए गुलाब रूपी चुटकी बजाती है। आशय यह है कि वसंत ऋतु में प्रात:काल गुलाब के फूल खिल उठते हैं।
प्रश्न
6.साहस
और
शक्ति
के
साथ
विनम्रता
हो
तो
बेहतर
है।
इस
कथन
पर
अपने
विचार
लिखिए।
उत्तर-यह पूर्णतया सत्य है कि साहस और शक्ति के साथ विनम्रता का मेल हो तो सोने पर सोहागा होने जैसी स्थिति हो जाती है। अन्यथा विनम्रता के अभाव में व्यक्ति उद्दंड हो जाता है। वह अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए दूसरों का अहित करने लगता है। साहस और शक्ति के साथ विनम्रता का मेल श्रीराम में है जो स्वयं को ‘दास’ शब्द से संबोधित करके प्रभावित करते हैं। वे अपनी विनम्रता के कारण परशुराम की क्रोधाग्नि को शीतल जल रूपी वचन के छीटें मारकर शांत कर देते हैं।
प्रश्न
7.भाव
स्पष्ट
कीजिए
(क)बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥
पुनि
पुनि
मोहि
देखाव
कुठारु।
चहत
उड़ावन
पूँकि
पहारू।
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ।।
देखि
कुठारु
सरासन
बाना।
मैं
कछु
कहा
सहित
अभिमाना।।
(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय
खाँड़
न
ऊखमय
अजहुँ
न
बूझ
अबूझ
।।
उत्तर-कवि कहना चाहता है कि राधिका की सुंदरता और उज्ज्वलता अपरंपार है। स्वयं चाँद भी उसके सामने इतना तुच्छ और छोटा है कि वह उसकी परछाईं-सा है। इसमें व्यतिरेक अलंकार है। व्यतिरेक में उपमान को उपमेय के सामने बहुत हीन और तुच्छ दिखाया जाता है।
प्रश्न
8.पाठ
के
आधार
पर
तुलसी
के
भाषा
सौंदर्य
पर
दस
पंक्तियाँ
लिखिए।
उत्तर-तुलसी की भाषा सरल, सरस, सहज और अत्यंत लोकप्रिय भाषा है। वे रस सिद्ध और अलंकारप्रिय कवि हैं। उन्हें अवधी और ब्रजे दोनों भाषाओं पर समान अधिकार है। रामचरितमानस की अवधी भाषा तो इतनी लोकप्रिय है कि वह जन-जन की कंठहार बनी हुई है। इसमें चौपाई छंदों के प्रयोग से गेयता और संगीतात्मकता बढ़ गई है। इसके अलावा उन्होंने दोहा, सोरठा, छंदों का भी प्रयोग किया है। उन्होंने भाषा को कंठहार बनाने के लिए कोमल शब्दों के प्रयोग पर बल दिया है तथा वर्गों में बदलाव किया है; जैसे
• का छति लाभु जून धनु तोरें ।
• गुरुहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे
तुलसी
के
काव्य
में
वीर
रस
एवं
हास्य
रस
की
सहज
अभिव्यक्ति
हुई
है;
जैसे
बालकु
बोलि
बधौं
नहि
तोहीं।
केवल
मुनिजड़
जानहि
मोही।।
इहाँ
कुम्हड़बतिया
कोउ
नाही।
जे
तरजनी
देखि
मर
जाही।।
अलंकार
– तुलसी
अलंकार
प्रिय
कवि
हैं।
उनके
काव्य
में
अनुप्रास,
उपमा,
रूपक
जैसे
अलंकारों
की
छटा
देखते
ही
बनती
है;
जैसे
अनुप्रास
– बालकु
बोलि
बधौं
नहिं
तोही।
उपमा
– कोटि
कुलिस
सम
वचन
तुम्हारा।
रूपक
– भानुवंश
राकेश
कलंकू।
निपट
निरंकुश
अबुध
अशंकू।।
उत्प्रेक्षा
– तुम्ह
तौ
कालु
हाँक
जनु
लावा।।
वक्रोक्ति
– अहो
मुनीसु
महाभट
मानी।
यमक
– अयमय
खाँड़
न
ऊखमय
अजहु
न
बूझ,
अबूझ
पुनरुक्ति
प्रकाश
– पुनि-पुनि मोह देखाव कुठारू।
इस
तरह
तुलसी
की
भाषा
भावों
की
तरह
भाषा
की
दृष्टि
से
भी
उत्तम
है।
प्रश्न
9.इस
पूरे
प्रसंग
में
व्यंग्य
का
अनूठा
सौंदर्य
है।
उदाहरण
के
साथ
स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर-पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की निम्नलिखित विशेषताएँ सामने आती हैं-
(क) देव दरबारी कवि थे। उन्होंने अपने आश्रयदाताओं, उनके परिवारजनों तथा दरबारी समाज को प्रसन्न करने के लिए जगमगाते हुए सुंदर चित्रण किए। उन्होंने जीवन के दुखों के नहीं, अपितु वैभव-विलास और सौंदर्य के चित्र खींचे। उनके सवैये में कृष्ण का दूल्हा-रूप है तो कवित्तों में वसंत और चाँदनी को भी राजसी वैभव-विलास से भरा-पूरा दिखाया गया है।
(ख) देव में कल्पना-शक्ति का विलास देखने को मिलता है। वे नई-नई कल्पनाएँ करते हैं। वृक्षों को पालना, पत्तों को बिछौना, फूलों को झिंगूला, वसंत को बालक, चाँदनी रात को आकाश में बना ‘सुधा-मंदिर’ आदि कहना उनकी उर्वर कल्पना शक्ति का परिचायक है।
(ग) देव ने सवैया और कवित्त छंदों का प्रयोग किया है। ये दोनों ही छंद वर्णिक हैं। छंद की कसौटी पर देव खरे उतरते हैं।
(घ) देव की भाषा संगीत, प्रवाह और लय की दृष्टि से बहुत मनोरम है।
(ङ) देव अनुप्रास, उपमा, रूपक आदि अलंकारों का सहज स्वाभाविक प्रयोग करते हैं।
(च) उनकी भाषा में कोमल और मधुर शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न
10.निम्नलिखित
पंक्तियों
में
प्रयुक्त
अलंकार
पहचानकर
लिखिए
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। ।
बार
बार
मोहि
लागि
बोलावा
॥
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त
देखि
जल
सम
बचन
बोले
रघुकुलभानु॥
उत्तर-(क) ‘ब’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार।
(ख) कोटि-कुलिस – उपमा अलंकार।
कोटि
कुलिस
सम
बचन
तुम्हारा।
– उपमा
अलंकार।
(ग) तुम्ह तौ काल हाँक जनु लावा – उत्प्रेक्षा अलंकार।
बार-बार मोहि लाग बोलावा – पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस, जल सम वचन – उपमा अलंकार।
भृगुवर
कोप
कृसानु
– रूपक
अलंकार।
रचना
और
अभिव्यक्ति
प्रश्न
11.“सामाजिक
जीवन
में
क्रोध
की
जरूरत
बराबर
पड़ती
है।
यदि
क्रोध
न
हो
तो
मनुष्य
दूसरे
के
द्वारा
पहुँचाए
जाने
वाले
बहुत
से
कष्टों
की
चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”
आचार्य
रामचंद्र
शुक्ल
जी
का
यह
कथन
इस
बात
की
पुष्टि
करता
है
कि
क्रोध
हमेशा
नकारात्मक
भाव
लिए
नहीं
होता
बल्कि
कभी-
कभी
सकारात्मक
भी
होता
है।
इसके
पक्ष
य
विपक्ष
में
अपना
मत
प्रकट
कीजिए।
उत्तर-क्रोध के सकारात्मक और नकारात्मक रूपों पर छात्र स्वयं चर्चा करें।
प्रश्न
12.संकलित
अंश
में
राम
का
व्यवहार
विनयपूर्ण
और
संयन्न
है,
लक्ष्मण
लगातार
व्यंग्य
बाणों
का
उपयोग
करते
हैं
और
परशुराम
का
व्यवहार
क्रोध
से
भरा
हुआ
है।
आप
अपने
आपको
इस
परिस्थिति
में
रखकर
लिखें
कि
आपका
व्यवहार
कैसा
होता?
उत्तर-राम, लक्ष्मण और परशुराम जैसी परिस्थितियाँ होने पर मैं राम और लक्ष्मण के मध्य का व्यवहार करूंगा। मैं श्रीराम जैसा नम्र-विनम्र हो नहीं सकता और लक्ष्मण जितनी उग्रता भी न करूंगा। मैं परशुराम को वस्तुस्थिति से अवगत कराकर उनकी बातों का साहस से भरपूर जवाब देंगा परंतु उनका उपहास न करूंगा।
प्रश्न
13.अपने
किसी
परिचित
या
मित्र
के
स्वभाव
की
विशेषताएँ
लिखिए।
उत्तर-छात्र अपने परिचित या मित्र की विशेषताएँ स्वयं लिखें।
प्रश्न
14.दूसरों
की
क्षमताओं
को
कम
नहीं
समझना
चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर-वन में बरगद का घना-सा पेड़ था। उसकी छाया में मधुमक्खियों ने छत्ता बना रखा था। उस पेड़ पर एक कबूतर भी रहता था। वह अक्सर मधुमक्खियों को नीचा, हीन और तुच्छ प्राणी समझकर सदा उनकी उपेक्षा किया करता था। उसकी बातों से एक मधुमक्खी तो रोनी-सी सूरत बना लेती थी और कबूतर से जान बचाती फिरती। वह मधुमक्खियों को बेकार का प्राणी मानता था। एक दिन एक शिकारी दोपहर में उसी पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुका। पेड़ पर बैठे कबूतर को देखकर उसके मुँह में पानी आ गया। वह धनुषबाण उठाकर कबूतर पर निशाना लगाकर बाण चलाने वाला ही था कि एक मधुमक्खी ने उसकी बाजू पर डंक मार दिया। शिकारी का तीर कबूतर के पास से दूर निकल गया। उसने बाजू पकड़कर बैठे शिकारी को देखकर बाकी का अनुमान लगा लिया। उस मधुमक्खी के छत्ते में लौटते ही उसने सबसे पहले सारी मधुमक्खियों से क्षमा माँगी और भविष्य में किसी की क्षमता को कम न समझने की कसम खाई। अब कबूतर उन मधुमक्खियों का मित्र बन चुका था।
प्रश्न
15.उन
घटनाओं
को
याद
करके
लिखिए
जब
आपने
अन्याय
का
प्रतिकार
किया
हो।
उत्तर-एक बार मेरे अध्यापक ने गणित में एक ही सवाल के लिए मुझे तीन अंक तथा किसी अन्य छात्र को पाँच अंक दे दिया। ऐसा उन्होंने तीन प्रश्नों में कर दिया था जिससे मैं कक्षा में तीसरे स्थान पर खिसक रहा था। यह बात मैंने अपने पिता जी को बताई। उन्होंने प्रधानाचार्य से मिलकर कापियों का पुनर्मूल्यांकन कराया और मैं कक्षा में संयुक्त रूप से प्रथम आ गया।
प्रश्न
16.अवधी
भाषा
आज
किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर-अवधी भाषा कानपुर से पूरब चलते ही उन्नाव के कुछ भागों लखनऊ, फैज़ाबाद, बाराबंकी, प्रतापगढ़, सुलतानपुर, जौनपुर, मिर्जापुर, वाराणसी, इलाहाबाद तथा आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है।
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