पाठ्यपुस्तक
के
प्रश्न-अभ्यास
लेख
से
प्रश्न 1.नदियों को माँ मानने की परंपरा हमारे यहाँ काफ़ी पुरानी है। लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें और किन रूपों में देखते हैं?
उत्तर-नदियों को माँ स्वरूप तो माना हो गया है लेकिन लेखक नागार्जुन ने उन्हें बेटियों, प्रेयसी व बहन के रूप में भी देखा है।
प्रश्न 2.सिंधु और ब्रह्मपुत्र की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं?
उत्तर-सिंधु और ब्रह्मपुत्र हिमालय से निकलने वाली प्रमुख और बड़ी नदियाँ हैं। इन दो नदियों के बीच से अन्य दो छोटी-बड़ी नदियाँ बहती हैं। ये नदियाँ दयालु हिमालय के पिघले दिल की एक-एक बूंद इकट्ठा होकर ये नदी बनी हैं। ये नदियाँ सुंदर एवं लुभावनी लगती हैं।
प्रश्न 3.-काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है?
उत्तर-जल ही जीवन है। ये नदियाँ हमें जल प्रदान कर जीवनदान देती हैं। ये नदियाँ लोगों के लिए कल्याणी एवं माता के समान पवित्र हैं। इन नदियों के किनारे ही लोगों ने अपनी पहली बस्ती बसाई और खेती बाड़ी करना शुरू किया। इसके अलावे ये नदियाँ गाँवों और शहरों की गंदगी भी अपने साथ बहाकर ले जाती रही हैं। इनका जल भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में विशेष भूमिका निभाता है। मानव के आधुनिकीकरण में जैसे-बिजली बनाना, सिंचाई के नवीन साधनों आदि में इन्होंने पूरा सहयोग दिया है। मनुष्य के लिए ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी, पेड़-पौधों आदि के लिए बहुत जरूरी है। इस प्रकार नदियाँ हमारे लिए कल्याणकारी हैं। यही कारण है कि काका कालेलकर ने उन्हें लोकमाता कहा है।
प्रश्न 4.हिमालय की यात्रा में लेखक ने किन-किन की प्रशंसा की है?
उत्तर-हिमालय की यात्रा में लेखक ने नदियों, पर्वतों, बर्फीली पहाड़ियों, हरी-भरी घाटियों तथा महासागरों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
लेख
से
आगे
प्रश्न 2.गोपालसिंह नेपाली की कविता ‘हिमालय और हम’, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘हिमालय’ तथा जयशंकर प्रसाद की कविता ‘हिमालय के आँगन में’ पढ़िए और तुलना कीजिए।
उत्तर- हिमालय
मेरे
नगपति!
मेरे
विशाल!
साकार,
दिव्य
गौरव
विराट,
पौरुष
के
पूंजीभूत
ज्वाल!
मेरे
जननी
के
हिम-किरीट!
मेरे
भारत
के
दिव्य
भाल?
मेरे
नगपति!
मेरे
विशाल!
युग-युग अजेय, निबंध, मुक्त,
युग-युग गर्वोन्नत, नित महान,
निस्सीम
व्योम
में
तान
रहा।
युग
से
किस
महिमा
का
वितान?
कैसी
अखंड
यह
चिर
समाधि?
यतिवर!
कैसा
यह
अमर
ध्यान
?
तू
महाशून्य
में
खोज
रहा
किस
जटिल
समस्या
का
निदान
?
उलझन
का
कैसा
विषम
जाल?
मेरे
नगपति!
मेरे
विशाल!
ओ, मौन, तपस्या-लीन यती।
पलभर
को
तो
कर
दृगुन्मेष।
रे
ज्वालाओं
से
दग्ध,
विकल
है
तड़प
रहा
पद
पर
स्वदेश।
सुखसिंधु,
पंचनद,
ब्रह्मपुत्र,
गंगा,
यमुना
की
अमिय-धारे
जिस
पुष्प
भूमि
की
ओर
बही
तेरी
विगलित
करुणा
उदार
मेरे
नगपति!
मेरे
विशाल!
-रामधारी सिंह दिनकर
उपरोक्त कविता की तुलना यदि नागार्जुन द्वारा लिखित निबंध से करें तो हम पाते हैं कि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने अपनी कविता में हिमालय की विशालता का वर्णन किया है। इस कविता में दर्शाया गया है कि हिमालय का भारतवासियों से प्राचीन काल से अत्यंत अनिष्ठ संबंध है। भारत धरती का मुकुट हिमालय पर्वत अपनी जड़ों को पाताल तक ले जाए हुए। है। उसके धवल शिखर आकाश का चुंबन करते हैं। यहाँ कवि दिनकर ने हिमालय को प्राचीन काल से समाधि में लीन होकर किसी समस्या का हल ढूँढ़ने का प्रयास किया है। वहीं लेखक नागार्जुन ने अपने निबंध में हिमालय का वर्णन नदियों के पिता के रूप में किया है जो अपनी बेटियों के लिए परेशान है।
प्रश्न 3.यह लेख 1947 में लिखा गया था। तब से हिमालय से निकलनेवाली नदियों में क्या-क्या बदलाव आए हैं?
उत्तर-1947 के बाद से आजतक नदियाँ उसी प्रकार हिमालय से बह रही हैं, लेकिन अब हिमालय से निकलने वाली नदियाँ प्रदूषण का शिकार हो चुकी हैं। अब जनसंख्या वृधि औद्योगिक क्रांति, मानवीय तथा प्रशासकीय उपेक्षा के कारण नदी के जल की गुणवत्ता में भी भारी कमी आई है। निरंतर प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। जगह-जगह बाँध बनाने के कारण जल-प्रवाह में न्यूनता हो गई जो कि मानव अहितकारी है। गंगा जल की पवित्रता समाप्त हो चुकी है।
प्रश्न 4.अपने संस्कृत शिक्षक से पूछिए कि कालिदास ने हिमालय को देवात्मा क्यों कहा है?
उत्तर-हिमालय पर्वत पर देवताओं का वास माना जाता है। ऋषि-मुनि यहाँ तपस्या करते हैं इसलिए कालिदास ने हिमालय को देवात्मा कहा।
अनुमान
और
कल्पना
प्रश्न 1.लेखक ने हिमालय से निकलनेवाली नदियों को ममता भरी आँखों से देखते हुए उन्हें हिमालय की बेटियाँ कहा है। आप उन्हें क्या कहना चाहेंगे? नदियों की सुरक्षा के लिए कौन-कौन से कार्य हो रहे हैं? जानकारी प्राप्त करें और अपना सुझाव दें।
उत्तर-लेखक ने नदियों को हिमालय की बेटियाँ कहा है, क्योंकि वह नदियों का उद्गम स्थल है। पर हम उन्हें माँ समान ही कहना चाहेंगे, क्योंकि वे हमें तथा धरती को जल प्रदान करती हैं। हमारी प्यास बुझाने के साथ-साथ खेतों की भी प्यास बुझाती हैं। एक सच्चे माँ एवं मित्र के रूप में नदियाँ हमारी सदैव हितैषी रही हैं और उन्होंने भलाई की है।
उत्तर- संकेत बिंदु
जल
प्राप्ति
बाँध
बनाना
वर्षा
में
सहायक
सिंचाई
में
सहायक
आवागमन
हेतु
सहायक
बिजली
बनाना।
नदियाँ
हमारे
जीवन
का
आधार
हैं।
बर्फीले
पहाड़ों
से
अस्तित्व
पाकर
धरती
के
धरातल
पर
बहती
हुई
नदियाँ
अपना
सुधा
रस
रूपी
जल
असंख्य
प्राणियों
को
प्रदान
करती
हैं।
प्राणी
मात्र
की
प्यास
बुझाने
के
अतिरिक्त
नदियाँ
धरती
को
उपजाऊ
बनाती
है।
आवागमन
का
साधन
हैं।
इन
पर
बाँध
बनाकर
बिजली
उत्पन्न
की
जाती
है।
हमारे
अधिकतर
तीर्थस्थल
भी
नदियों
के
किनारे
बसे
हैं
इसी
कारण
नदियाँ
पूजनीय
भी
हैं।
नदियों
से
हमें
धरती
हेतु
उपजाऊ
पदार्थ
प्राप्त
होते
हैं।
ये
वनों
को
सींचती
हैं।
वर्षा
लाने
में
सहायक
होती
हैं।
अनगिनत
जीव
इनसे
जीवन
पाते
हैं।
नदियों
के
किनारे
गाँवों
का
बसेरा
पाया
जाता
है।
गाँव
के
लोग
अपनी
छोटी-बड़ी सभी आवश्यकताएँ जैसे सिंचाई करने, पानी पीने, कपड़े धोने, नहाने, जानवरों हेतु नदियों का जल ही प्रयोग करते हैं।
अंत
में
यही
कहा
जा
सकता
है
कि
नदियाँ
हमारी
संस्कृति
की
पहचान
हैं।
इन्हें
दूषित
नहीं
करना
चाहिए
क्योंकि
हमारा
जीवन
इन्हीं
पर
निर्भर
है।
भाषा
की
बात
प्रश्न 1.अपनी बात कहते हुए लेखक ने अनेक समानताएँ प्रस्तुत की हैं। ऐसी तुलना से अर्थ अधिक स्पष्ट एवं सुंदर बन जाता है। उदाहरण
(क) संभ्रांत महिला की भाँति वे प्रतीत होती थीं।
(ख) माँ और दादी, मौसी और मामी की गोद की तरह उनकी धारा में डुबकियाँ लगाया करता।
• अन्य पाठों से ऐसे पाँच तुलनात्मक प्रयोग निकालकर कक्षा में सुनाइए और उन सुंदर प्रयोगों को कॉपी में भी लिखिए।
उत्तर-अन्य पाठों से
उन्होंने
संदूक
खोलकर
एक
चमकती-सी चीज़ निकाली।
सागर
की
हिलोरों
की
भाँति
उसका
यह
मादक
स्वर
गलीभर
के
मकानों
में
उस
ओर
तक
लहराता
हुआ
पहुँचता
और
खिलौने
वाला
आगे
बढ़
जाता
है।
इन्हें
देखकर
तो
ऐसा
लग
रहा
है
मानो
बहुत-सी छोर्टी-छोटी बालूशाही रख दी गई हो।
यह
स्थिति
चित्रा
जैसी
अभिमानिनी
माजोरी
के
लिए
ही
कही
जाएगी।
प्रश्न 2.निर्जीव वस्तुओं को मानव-संबंधी नाम देने से निर्जीव वस्तुएँ भी मानो जीवित हो उठती हैं। लेखक ने इस पाठ में कई स्थानों पर ऐसे प्रयोग किए हैं, जैसे
(क) परंतु इस बार जब मैं हिमालय के कंधे पर चढ़ा तो वे कुछ और रूप में सामने थीं।
(ख) काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता कहा है।
• पाठ से इसी तरह के और उदाहरण हूँढ़िए।
उत्तर-पाठ से अन्य उदाहरण
इनका
उछलना
और
कूदना,
खिलखिलाकर
हँसते
जाना,
इनकी
भाव-भंगी यह उल्लास कहाँ गायब हो जाता है।
माँ-बाप की गोद में नंग-धडंग होकर खेलने वाली इन बालिकाओं को रूप
पिता
का
विराट
प्रेम
पाकर
भी
अगर
इनका
मन
अतृप्त
ही
है
तो
कौन
होगा
जो
इनकी
प्यास
मिटा
सकेगा।
बूढ़े
हिमालय
की
गोद
में
बच्चियाँ
बनकर
ये
कैसे
खेला
करती
हैं।
हिमालय
को
ससुर
और
समुद्र
को
उसका
दामाद
कहने
में
कुछ
भी
झिझक
नहीं
होती
है।
प्रश्न 3.पिछली कक्षा में आप विशेषण और उसके भेदों से परिचय प्राप्त कर चुके हैं। नीचे दिए गए विशेषण और विशेष्य (संज्ञा) का मिलान कीजिए
विशेषण
विशेष्य विशेषण विशेष्य
संभ्रांत वर्षा चंचल जंगल
समतल महिला घना नदियाँ
मूसलाधार आँगन
उत्तर-
विशेषण
विशेष्य विशेषण विशेष्य
संभ्रांत महिला चंचल नदियाँ
समतल आँगन घना जंगल
मूसलाधार वर्षा
प्रश्न 4.द्वंद्व समास के दोनों पद प्रधान होते हैं। इस समास में ‘और’ शब्द का लोप हो जाता है, जैसे- राजा-रानी द्वंद्व समास है जिसका अर्थ है राजा और रानी। पाठ में कई स्थानों पर द्वंद्व समासों का प्रयोग किया गया है। इन्हें खोजकर वर्णमाला क्रम (शब्दकोश-शैली) में लिखिए।
उत्तर
छोटी
– बड़ी
भाव
– भंगी
माँ
– बाप
उत्तर-रात-तार, जाता-ताजा, भला-लाभ, राही-हीरा, नव-वन, नमी-मीन, नशा-शान, लाल-लला
उत्तर-
सतलुज
शतद्रुम
रोपड़
रूपपुर
।
झेलम
वितस्ता
चिनाब
विपाशा
अजमेर
अजयमेरु
बनारस
वाराणसी
प्रश्न 7.‘उनके खयाल में शायद ही यह बात आ सके कि बूढ़े हिमालय की गोद में बच्चियाँ बनकर ये कैसे खेला करती हैं।’
• उपर्युक्त पंक्ति में ‘ही’ के प्रयोग की ओर ध्यान दीजिए। ‘ही’ वाला वाक्य नकारात्मक अर्थ दे रहा है। इसीलिए ‘ही’ वाले वाक्य में कही गई बात को हम ऐसे भी कह सकते हैं-उनके खयाल में शायद यह बात न आ सके।
• इसी प्रकार नकारात्मक प्रश्नवाचक वाक्य कई बार ‘नहीं’ के अर्थ में इस्तेमाल नहीं होते हैं, जैसे-महात्मा गांधी को कौन नहीं जानता? दोनों प्रकार के वाक्यों के समान तीन-तीन उदाहरण सोचिए और इस दृष्टि से उनका विश्लेषण कीजिए।
उत्तर-वाक्य विश्लेषण
(क) बापू को कौन नहीं जानता। हर कोई बापू को जानता है।
(ख) उन्हें शायद ही इस घटना की जानकारी हो। शायद उन्हें घटना की जानकारी न हो।
(ग) वह शायद ही तुम्हें देख सके। शायद उन्हें घटना की जानकारी न हो।
No comments:
Post a Comment