झेलम के किनारे वाली लड़की
झेलम के किनारे
एक लड़की रहती थी —
बालों में चम्पा का फूल,
आँखों में बारिश का रंग,
और हाथ में होता था
एक टूटा हुआ चूड़ी का टुकड़ा
जिसे वो ज़रा-ज़रा मुस्कुरा कर
सजाया करती थी सपनों में।
उसके पाँवों ने पहचाने थे
हर पत्थर की दरार,
घाट की सीढ़ियों पर बैठकर
वो पानी से बातें करती थी —
“आज बहाव तेज़ है,
कल क्या लौटूँगी मैं यहाँ?”
और झेलम हँस देती थी —
बस उतना ही, जितना दर्द छुपा सके।
एक दिन
सारे पेड़ खामोश हो गए,
घाट पर गूंजने वाली उसकी हँसी
किसी रेत में दब गई,
और झेलम —
जैसे अपनी ही आँखों में
कोहरा भर लाई हो।
घंटियों की जगह चुप्पियाँ टंगी हैं,
मछलियाँ अब नहीं डरतीं किसी के पैरों से,
और झेलम...
बस बहती है —
बिना देखे किनारे की ओर।
कहते हैं
कभी-कभी शाम के झुटपुटे में
एक परछाई उतरती है पानी पर,
चम्पा की खुशबू-सी,
हल्की... धीमी...
और कोई पूछता है —
“क्या तुमने देखी झेलम के किनारे वाली लड़की?”
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