कविता:
"सफ़्हा खुला है आज का"
सफ़्हा खुला है आज का, रंग भरो कुछ प्यार से,
लफ़्ज़ों की बारिश हो जाए, काग़ज़ भी मुस्काए।
कल की मीठी नींद से उठ, आज में सपना बो दो,
इक छोटा सा काम ही तो है, मुस्काकर बस कर लो।
ना तकरार कलम से हो, ना लड़ाई दवात से,
बस दिल की नर्मी भर दो तुम होमवर्क की बात से।
चलो चलें उस राह पर, जो रोशनी बन जाती है,
हर सवाल इक गीत लगे, जब कोशिश साथ निभाती है।
D.S.
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