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Friday, May 2, 2025

झेलम के किनारे वाली लड़की

 

झेलम के किनारे वाली लड़की

झेलम के किनारे
एक लड़की रहती थी —
बालों में चम्पा का फूल,
आँखों में बारिश का रंग,
और हाथ में होता था
एक टूटा हुआ चूड़ी का टुकड़ा
जिसे वो ज़रा-ज़रा मुस्कुरा कर
सजाया करती थी सपनों में।

उसके पाँवों ने पहचाने थे
हर पत्थर की दरार,
घाट की सीढ़ियों पर बैठकर
वो पानी से बातें करती थी —
“आज बहाव तेज़ है,
कल क्या लौटूँगी मैं यहाँ?”
और झेलम हँस देती थी —
बस उतना ही, जितना दर्द छुपा सके।

एक दिन
सारे पेड़ खामोश हो गए,
घाट पर गूंजने वाली उसकी हँसी
किसी रेत में दब गई,
और झेलम —
जैसे अपनी ही आँखों में
कोहरा भर लाई हो।

घंटियों की जगह चुप्पियाँ टंगी हैं,
मछलियाँ अब नहीं डरतीं किसी के पैरों से,
और झेलम...
बस बहती है —
बिना देखे किनारे की ओर।

कहते हैं
कभी-कभी शाम के झुटपुटे में
एक परछाई उतरती है पानी पर,
चम्पा की खुशबू-सी,
हल्की... धीमी...
और कोई पूछता है —
“क्या तुमने देखी झेलम के किनारे वाली लड़की?”

Sunday, April 27, 2025

कड़ी मेहनत का उजाला



चलो सपनों के संग चलें,
हर मुश्किल को हल कर लें।
पसीनों से धरती सींचें,
अपना आकाश खुद गढ़ लें।

ना थकना है, ना रुकना है,
हर मंज़िल को छूना है।
मेहनत के दीप जलाकर,
कल अपना खुद बुनना है।

आज जो बीज बोओगे,
कल वो फूल बन जाएगा।
कड़ी मेहनत के सूरज से,
अंधियारा भी मुस्काएगा।

चलो चलें, ना डरें कहीं,
इरादों से राह बनाएं।
कड़ी मेहनत की इस धरती पर,
सपनों का गुलशन सजाएं।

दलीप सिंह