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Monday, August 12, 2024

Compound words in Hindi (समास) Definition, Examples, Types, Explanation

 

Compound words in Hindi (समास) Definition, Examples, Types, Explanation

Samaas definition, Types of Compound words, Compound words examples – समास की परिभाषा, समास के भेद और उदाहरण

Compound words in Hindi, Samaas (समास): इस लेख में हम समास और समास के भेदों को उदहारण सहित जानेंगे। समास किसे कहते हैं? सामासिक शब्द किसे कहते हैं? पूर्वपद और उत्तरपद किसे कहते हैं? समास विग्रह कैसे होता है? समास और संधि में क्या अंतर है? समास के कितने भेद हैं? इन सभी प्रश्नों को इस लेख में बहुत ही सरल भाषा में विस्तार पूर्वक बताया गया है।

 

समास की परिभाषा - Definition

समास का तात्पर्य होता है - संक्षिप्तीकरण। इसका शाब्दिक अर्थ होता है - छोटा रूप। अथार्त जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को समास कहते हैं।

दूसरे शब्दों में - दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द (जिसका कोई अर्थ हो) को समास कहते हैं।

जैसे
रसोई के लिए घरइसे हम रसोईघरभी कह सकते हैं।

संस्कृत, जर्मन तथा बहुत सी भारतीय भाषाओँ में समास का बहुत प्रयोग किया जाता है।

 

 

सामासिक शब्द

समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहा जाता है। समास होने के बाद विभक्तियों के चिन्ह गायब हो जाते हैं।

जैसे -

रसोई के लिए घर = रसोईघर
हाथ के लिए कड़ी = हथकड़ी
नील और कमल = नीलकमल
राजा का पुत्र = राजपुत्र

 

 

पूर्वपद और उत्तरपद

समास रचना में दो पद होते हैं, पहले पद को पूर्वपदकहा जाता है और दूसरे पद को उत्तरपदकहा जाता है। इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद कहलाता है।

जैसे-

पूजाघर (समस्तपद) – पूजा (पूर्वपद) + घर (उत्तरपद) - पूजा के लिए घर (समास-विग्रह)
राजपुत्र (समस्तपद) – राजा (पूर्वपद) + पुत्र (उत्तरपद) - राजा का पुत्र (समास-विग्रह)

समास विग्रह

सामासिक शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करने को समास-विग्रह कहते हैं। विग्रह के बाद सामासिक शब्द गायब हो जाते हैं अथार्त जब समस्त पद के सभी पद अलग-अलग किय जाते हैं, उसे समास-विग्रह कहते हैं।

जैसे -

माता-पिता = माता और पिता।
राजपुत्र = राजा का पुत्र।

समास और संधि में अंतर

संधि का शाब्दिक अर्थ होता है - मेल। संधि में उच्चारण के नियमों का विशेष महत्व होता है। इसमें दो वर्ण होते हैं, इसमें कहीं पर एक तो कहीं पर दोनों वर्णों में परिवर्तन हो जाता है और कहीं पर तीसरा वर्ण भी आ जाता है। संधि किये हुए शब्दों को तोड़ने की क्रिया विच्छेद कहलाती है। संधि में जिन शब्दों का योग होता है, उनका मूल अर्थ नहीं बदलता।

जैसे -

पुस्तक+आलय = पुस्तकालय।

समास का शाब्दिक अर्थ होता है - संक्षेप। समास में वर्णों के स्थान पर पद का महत्व होता है। इसमें दो या दो से अधिक पद मिलकर एक समस्त पद बनाते हैं और इनके बीच से विभक्तियों का लोप हो जाता है। समस्त पदों को तोडने की प्रक्रिया को विग्रह कहा जाता है। समास में बने हुए शब्दों के मूल अर्थ को परिवर्तित किया भी जा सकता है और परिवर्तित नहीं भी किया जा सकता है।

जैसे -

विषधर = विष को धारण करने वाला अथार्त शिव।

समास के भेद

समास के मुख्यतः छः भेद माने जाते हैं

 

Description: samaas

 

 

i.                अव्ययीभाव समास

ii.        तत्पुरुष समास

iii.         कर्मधारय समास

iv.         द्विगु समास

v.        द्वंद्व समास

vi.        बहुब्रीहि समास

 

अव्ययीभाव समास

जिस समास का पूर्व पद प्रधान हो, और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें अव्यय पद का प्रारूप लिंग, वचन, कारक, में नहीं बदलता है, वो हमेशा एक जैसा रहता है।

दूसरे शब्दों में - यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयोग हों, वहाँ पर अव्ययीभाव समास होता है। संस्कृत में उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास ही मने जाते हैं।

इसमें पहला पद उपसर्ग होता है जैसे अ, , अनु, प्रति, हर, भर, नि, निर, यथा, यावत आदि उपसर्ग शब्द का बोध होता है।

जैसे -

यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार
प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
आजन्म = जन्म से लेकर
घर-घर = प्रत्येक घर
रातों रात = रात ही रात में
आमरण = मृत्यु तक
अभूतपूर्व = जो पहले नहीं हुआ
निर्भय = बिना भय के
अनुकूल = मन के अनुसार
भरपेट = पेट भरकर
बेशक = शक के बिना
खुबसूरत = अच्छी सूरत वाली

 

तत्पुरुष समास

जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। यह कारक से जुड़ा समास होता है। इसमें ज्ञातव्य-विग्रह में जो कारक प्रकट होता है उसी कारक वाला वो समास होता है। इसे बनाने में दो पदों के बीच कारक चिन्हों का लोप हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।

इस समास में साधारणतः प्रथम पद विशेषण और द्वितीय पद विशेष्य होता है। द्वितीय पद, अर्थात बादवाले पद के विशेष्य होने के कारण इस समास में उसकी प्रधानता रहती है।

जैसे -

धर्म का ग्रन्थ = धर्मग्रन्थ
राजा का कुमार = राजकुमार
तुलसीदासकृत = तुलसीदास द्वारा कृत

इसमें कर्ता और संबोधन कारक को छोड़कर शेष छ: कारक चिन्हों का प्रयोग होता है। जैसे - कर्म कारक, करण कारक, सम्प्रदान कारक, अपादान कारक, सम्बन्ध कारक, अधिकरण कारक इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है।
 
कर्म तत्पुरुष - इसमें दो पदों के बीच में कर्मकारक छिपा हुआ होता है। कर्मकारक का चिन्ह कोहोता है। कोको कर्मकारक की विभक्ति भी कहा जाता है। उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं। कोके लोप से यह समास बनता है।

जैसे - ग्रंथकार = ग्रन्थ को लिखने वाला
 
करण तत्पुरुष - जहाँ पर पहले पद में करण कारक का बोध होता है। इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है। करण कारक का चिन्ह या विभक्ति के द्वाराऔर सेहोता है। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं। सेऔर के द्वाराके लोप से यह समास बनता है।

जैसे - वाल्मिकिरचित = वाल्मीकि के द्वारा रचित
 
सम्प्रदान तत्पुरुष - इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति के लिएहोती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं। के लिएका लोप होने से यह समास बनता है।

जैसे - सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह
 
अपादान तत्पुरुष - इसमें दो पदों के बीच में अपादान कारक छिपा होता है। अपादान कारक का चिन्ह या विभक्ति से अलगहोता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं। सेका लोप होने से यह समास बनता है।

जैसे - पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
 
सम्बन्ध तत्पुरुष - इसमें दो पदों के बीच में सम्बन्ध कारक छिपा होता है। सम्बन्ध कारक के चिन्ह या विभक्ति का, ‘के, ‘कीहोती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं। का, ‘के, ‘कीआदि का लोप होने से यह समास बनता है।

जैसे - राजसभा = राजा की सभा
 
अधिकरण तत्पुरुष - इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति में, ‘परहोता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं। मेंऔर परका लोप होने से यह समास बनता है।

जैसे - जलसमाधि = जल में समाधि

 

 

तत्पुरुष समास के प्रकार

i.                नञ तत्पुरुष समास

 

नञ तत्पुरुष समास

इसमें पहला पद निषेधात्मक होता है उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।

जैसे -

असभ्य = न सभ्य
अनादि = न आदि
असंभव = न संभव
अनंत = न अंत

 

कर्मधारय समास

जिस समास का उत्तरपद प्रधान होता है, जिसके लिंग, वचन भी सामान होते हैं। जो समास में विशेषण-विशेष्य और उपमेय-उपमान से मिलकर बनते हैं, उसे कर्मधारय समास कहते हैं।

कर्मधारय समास में व्यक्ति, वस्तु आदि की विशेषता का बोध होता है। कर्मधारय समास के विग्रह में है जो, ‘के समान है जोतथा रूपीशब्दों का प्रयोग होता है।

जैसे -

चन्द्रमुख - चन्द्रमा के सामान मुख वाला - (विशेषता)
दहीवड़ा - दही में डूबा बड़ा - (विशेषता)
गुरुदेव - गुरु रूपी देव - (विशेषता)
चरण कमल - कमल के समान चरण - (विशेषता)
नील गगन - नीला है जो असमान - (विशेषता)

 

द्विगु समास

द्विगु समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है और कभी-कभी उत्तरपद भी संख्यावाचक होता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह को दर्शाती है, किसी अर्थ को नहीं। इससे समूह और समाहार का बोध होता है। उसे द्विगु समास कहते हैं।

जैसे -

नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
दोपहर = दो पहरों का समाहार
त्रिवेणी = तीन वेणियों का समूह
पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समूह
त्रिलोक = तीन लोकों का समाहार
शताब्दी = सौ अब्दों का समूह
सप्तऋषि = सात ऋषियों का समूह
त्रिकोण = तीन कोणों का समाहार
सप्ताह = सात दिनों का समूह
तिरंगा = तीन रंगों का समूह
चतुर्वेद = चार वेदों का समाहार

द्विगु समास के भेद

 

1. समाहारद्विगु समास
2.
उत्तरपदप्रधानद्विगु समास

समाहारद्विगु समास

समाहार का मतलब होता है समुदाय, इकट्ठा होना, समेटना उसे समाहारद्विगु समास कहते हैं।

जैसे -

तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक
पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी
तीन भुवनों का समाहार = त्रिभुवन

 

उत्तरपदप्रधानद्विगु समास

इसका दूसरा पद प्रधान रहता है और पहला पद संख्यावाची। इसमें समाहार नहीं जोड़ा जाता।
उत्तरपदप्रधानद्विगु समास दो प्रकार के होते हैं।

(1) बेटा या फिर उत्पन्न के अर्थ में।

जैसे -

दो माँ का =दुमाता
दो सूतों के मेल का = दुसूती।

(2) जहाँ पर सच में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है।

जैसे -

पांच प्रमाण = पंचप्रमाण
पांच हत्थड = पंचहत्थड

 

 

द्वंद्व समास

इस समास में दोनों पद ही प्रधान होते हैं इसमें किसी भी पद का गौण नहीं होता है। ये दोनों पद एक-दूसरे पद के विलोम होते हैं लेकिन ये हमेशा नहीं होता है। इसका विग्रह करने पर और, अथवा, या, एवं का प्रयोग होता है उसे द्वंद्व समास कहते हैं। द्वंद्व समास में योजक चिन्ह (-) और 'या' का बोध होता है।

जैसे -

जलवायु = जल और वायु
अपना-पराया = अपना या पराया
पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण
अन्न-जल = अन्न और जल
नर-नारी = नर और नारी
गुण-दोष = गुण और दोष
देश-विदेश = देश और विदेश

द्वंद्व समास के भेद

1. इतरेतरद्वंद्व समास
2.
समाहारद्वंद्व समास
3.
वैकल्पिकद्वंद्व समास

इतरेतरद्वंद्व समास

वो द्वंद्व जिसमें और शब्द से भी पद जुड़े होते हैं और अलग अस्तित्व रखते हों उसे इतरेतर द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास से जो पद बनते हैं वो हमेशा बहुवचन में प्रयोग होते हैं क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों से मिलकर बने होते हैं।

जैसे -

राम और कृष्ण = राम-कृष्ण
माँ और बाप = माँ-बाप
अमीर और गरीब = अमीर-गरीब
गाय और बैल = गाय-बैल
ऋषि और मुनि = ऋषि-मुनि

यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि इतरेतर द्वन्द्व में दोनों पद न केवल प्रधान होते है, बल्कि अपना अलग-अलग अस्तित्व भी रखते है।

समाहारद्वंद्व समास

समाहार का अर्थ होता है - समूह। जब द्वंद्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़ा होने पर भी अलग-अलग अस्तिव नहीं रखकर समूह का बोध कराते हैं, तब वह समाहारद्वंद्व समास कहलाता है। इस समास में दो पदों के अलावा तीसरा पद भी छुपा होता है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते हैं।

जैसे -

दालरोटी = दाल और रोटी
हाथपाँव = हाथ और पाँव
आहारनिंद्रा = आहार और निंद्रा

वैकल्पिक द्वंद्व समास

इस द्वंद्व समास में दो पदों के बीच में या, अथवा आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे होते हैं उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास में ज्यादा से ज्यादा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग होता है।

इस समास में विकल्प सूचक समुच्चयबोधक अव्यय 'वा', 'या', 'अथवा' का प्रयोग होता है, जिसका समास करने पर लोप हो जाता है।

जैसे -
पाप-पुण्य = पाप या पुण्य
भला-बुरा = भला या बुरा
थोडा-बहुत = थोडा या बहुत

बहुब्रीहि समास

इस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। जब दो पद मिलकर तीसरा पद बनाते हैं तब वह तीसरा पद प्रधान होता है। इसका विग्रह करने पर वाला, है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वहआदि आते हैं, वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।

दूसरे शब्दों में- जिस समास में पूर्वपद तथा उत्तरपद- दोनों में से कोई भी पद प्रधान न होकर कोई अन्य पद ही प्रधान हो, वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।

जिस समस्त-पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिल कर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते है, उसमें बहुव्रीहि समास होता है। 'नीलकंठ', नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव। यहाँ पर दोनों पदों ने मिल कर एक तीसरे पद 'शिव' का संकेत किया, इसलिए यह बहुव्रीहि समास है।

इस समास के समासगत पदों में कोई भी प्रधान नहीं होता, बल्कि पूरा समस्तपद ही किसी अन्य पद का विशेषण होता है।

जैसे -

गजानन = गज का आनन है जिसका (गणेश)
त्रिनेत्र = तीन नेत्र हैं जिसके (शिव)
नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका (शिव)
लम्बोदर = लम्बा है उदर जिसका (गणेश)
दशानन = दश हैं आनन जिसके (रावण)
चतुर्भुज = चार भुजाओं वाला (विष्णु)
पीताम्बर = पीले हैं वस्त्र जिसके (कृष्ण)
चक्रधर= चक्र को धारण करने वाला (विष्णु)

बहुब्रीहि समास के भेद

1. समानाधिकरण बहुब्रीहि समास
2.
व्यधिकरण बहुब्रीहि समास
3.
तुल्ययोग बहुब्रीहि समास
4.
व्यतिहार बहुब्रीहि समास
5.
प्रादी बहुब्रीहि समास

समानाधिकरण बहुब्रीहि समास

इसमें सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है, वो कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।

जैसे -

प्राप्त है उदक जिसको = प्रप्तोद्क
जीती गई इन्द्रियां हैं जिसके द्वारा = जितेंद्रियाँ
दत्त है भोजन जिसके लिए = दत्तभोजन
निर्गत है धन जिससे = निर्धन
नेक है नाम जिसका = नेकनाम
सात है खण्ड जिसमें = सतखंडा

व्यधिकरण बहुब्रीहि समास

समानाधिकरण बहुब्रीहि समास में दोनों पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन यहाँ पहला पद तो कर्ता कारक की विभक्ति का होता है लेकिन बाद वाला पद सम्बन्ध या फिर अधिकरण कारक का होता है, उसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।

जैसे -

शूल है पाणी में जिसके = शूलपाणी
वीणा है पाणी में जिसके = वीणापाणी

तुल्ययोग बहुब्रीहि समास

जिसमें पहला पद सहहोता है वह तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहलाता है। इसे सहबहुब्रीहि समास भी कहती हैं। सह का अर्थ होता है साथ और समास होने की वजह से सह के स्थान पर केवल स रह जाता है।

इस समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है की विग्रह करते समय जो सह दूसरा वाला शब्द प्रतीत हो वो समास में पहला हो जाता है।

जैसे -

जो बल के साथ है = सबल
जो देह के साथ है = सदेह
जो परिवार के साथ है = सपरिवार

व्यतिहार बहुब्रीहि समास

जिससे घात या प्रतिघात की सुचना मिले उसे व्यतिहार बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास में यह प्रतीत होता है की इस चीज से और उस चीज से लड़ाई हुई।

जैसे -

मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई = मुक्का-मुक्की
बातों-बातों से जो लड़ाई हुई = बाताबाती

 

 

प्रादी बहुब्रीहि समास

जिस बहुब्रीहि समास पूर्वपद उपसर्ग हो वह प्रादी बहुब्रीहि समास कहलाता है।

जैसे -

नहीं है रहम जिसमें = बेरहम
नहीं है जन जहाँ = निर्जन

कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर

  इन दोनों समासों में अंतर समझने के लिए इनके विग्रह पर ध्यान देना चाहिए। कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है। जैसे - 'नीलगगन' में 'नील' विशेषण है तथा 'गगन' विशेष्य है। इसी तरह 'चरणकमल' में 'चरण' उपमेय है और 'कमल' उपमान है। अतः ये दोनों उदाहरण कर्मधारय समास के है।
बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है।

 

जैसे - 'चक्रधर' चक्र को धारण करता है जो अर्थात 'श्रीकृष्ण'

नीलकंठ - नीला है जो कंठ - (कर्मधारय)
नीलकंठ - नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव - (बहुव्रीहि)

लंबोदर - मोटे पेट वाला - (कर्मधारय)
लंबोदर - लंबा है उदर जिसका अर्थात गणेश - (बहुव्रीहि)

महात्मा - महान है जो आत्मा - (कर्मधारय)
महात्मा - महान आत्मा है जिसकी अर्थात विशेष व्यक्ति - (बहुव्रीहि)

कमलनयन - कमल के समान नयन - (कर्मधारय)
कमलनयन - कमल के समान नयन हैं जिसके अर्थात विष्णु - (बहुव्रीहि)

पीतांबर - पीले हैं जो अंबर (वस्त्र) - (कर्मधारय)
पीतांबर - पीले अंबर हैं जिसके अर्थात कृष्ण - (बहुव्रीहि)

 

द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर

द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है। जैसे-

चतुर्भुज - चार भुजाओं का समूह - द्विगु समास।
चतुर्भुज - चार है भुजाएँ जिसकी अर्थात विष्णु - बहुव्रीहि समास।

पंचवटी - पाँच वटों का समाहार - द्विगु समास।

पंचवटी - पाँच वटों से घिरा एक निश्चित स्थल अर्थात दंडकारण्य में स्थित वह स्थान जहाँ वनवासी राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ निवास किया - बहुव्रीहि समास।

त्रिलोचन - तीन लोचनों का समूह - द्विगु समास।
त्रिलोचन - तीन लोचन हैं जिसके अर्थात शिव - बहुव्रीहि समास।

दशानन - दस आननों का समूह - द्विगु समास।
दशानन - दस आनन हैं जिसके अर्थात रावण - बहुव्रीहि समास।

 

द्विगु और कर्मधारय में अंतर

(i) द्विगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है।

(ii)
द्विगु का पहला पद ही विशेषण बन कर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है। जैसे-

नवरत्न - नौ रत्नों का समूह - द्विगु समास
चतुर्वर्ण - चार वर्णो का समूह - द्विगु समास
पुरुषोत्तम - पुरुषों में जो है उत्तम - कर्मधारय समास
रक्तोत्पल - रक्त है जो उत्पल - कर्मधारय समास

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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